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सारस आदि पक्षियों का कलरव राजप्रासाद के वातावरण को संगीतमय बना देता था। अनेक छोटे-मोटे उपवनों के बाद राजप्रासाद के मुख्यद्वार पर जाया जा सकता था। उसके स्वर्णमय कपाटों में प्रवाल, गोमेद, राजावर्त, नीलमणि, पुष्पराज आदि रत्न जड़े हुए थे।
राजप्रासाद के मुख्यद्वार पर तैनात सैनिक हृष्ट-पुष्ट, मांसल और सुन्दर शरीरधारी थे। उनके मांसल शरीर से यौवन टपकता-सा दिख रहा था। प्रत्येक प्रहरी के पास नानाविध शस्त्रास्त्र थे।
महाप्रतिहार विमलसेन की आज्ञा के बिना कोई भी व्यक्ति उस महालय में प्रवेश नहीं पा सकता था। महामात्य शकडाल, महासेनाधिपति सौरदेव और मगध-सम्राट् के निजी व्यक्तियों के बिना कोई भी व्यक्ति बिना आज्ञापत्र के उसमें प्रवेश नहीं पा सकता था।
मगध-सम्राट् के मन्त्री राजप्रासाद की सीमा में निर्मित आवासों में रहते थे। सम्राट् के अंगरक्षक भी उसी सीमा में निवास करते थे।
राजप्रासाद की व्यवस्था और संरक्षण का पूरा भार महाप्रतिहार विमलसेन पर था।
राजप्रासाद के मुख्यद्वार को लांघने के बाद अश्वशाला, पशुशाला, गोशाला, पाकशाला, अतिथिगृह, मन्दिर, उपाश्रय, भैषजालय, चित्रशाला, नाट्यगृह, स्नानागार, शस्त्र-भंडार, धन-भंडार, रत्न-भंडार, वस्त्रभंडार, सामग्री-भंडार आदि-आदि छोटे-मोटे आवास-निवास थे। उनके आगे मगधेश्वर का निवास स्थान निर्मित था। वह अत्यन्त रमणीय और रंग-बिरंगे कांचों से निर्मित था। निवास स्थान की भित्तियों पर रत्न और स्वर्ण जड़ित चित्र थे। शुक और सारिका, मयूर और मयूरी, कोकिल और कोकिला, हंस और हंसिनी, सारस और सारसी आदि पक्षियों के युगल सोपान श्रेणी के चारों ओर नाचते-कूदते थे। निवास स्थान के चारों ओर रत्नजड़ित दीपमालाएं लटक रही थीं। परिचारक-परिचारिकाएं, दासदासी, प्रहरी और प्रहरिणियां- सब अपने-अपने काम में शान्त भाव से संलग्न थे। समूचा वातावरण शान्त और स्निग्ध था।
आर्य स्थूलभद्र और कोशा
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