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________________ ५. मगधेश्वर विश्व की समृद्धि जिनके मस्तक का तेजछत्र थी, मनुष्यों के सुख जिनके चरणों के फूल बने थे, देवताओं के विलास जिनेक आंगण में तुच्छ-से प्रतीत होते थे, जीवन की समस्त रसिकताएं जहां नाचती थीं, वे महाराज राजेश्वर मगध-सम्राट् घननन्द विश्व के अजोड़ व्यक्ति माने जाते थे। वैभव और वीरत्व का एकत्व सहज-सरल नहीं है। विलास के रहते हुए मर्यादा की रक्षा करना कठिन होता है, किन्तु महाराज घननन्द के लिए यह सब सहज और सरल था। भारत के मगध-सम्राट् मानवलोक के इन्द्र के समान आख्यात थे और यह तनिक भी अस्वाभाविक नहीं था। दिन का दूसरा प्रहर चल रहा था। वैशाखी सूर्य की किरणें मगध-सम्राट् के राजप्रासाद को दग्ध करने का व्यर्थ प्रयत्न कर रही थीं। मगध-सम्राट् के राजप्रासाद के चारों ओर सात दुर्ग थे। वे सब वन, उपवन और सरोवरों से सुशोभित थे। पक्षियों का कलरव, वृक्षों का पत्रगान, वायु का भैरवताल और प्रहरियों के शब्दनाद से राजप्रासाद जीवन्त और उर्मिल दिख रहा था। राजप्रासाद के सातों दुर्गों के मुख्यद्वार चांदी और स्वर्ण की कारीगरी के कारण चमक-दमक रहे थे। प्रत्येक द्वार पर प्रहरी सहजता से रातदिन पहरा देते थे। दुर्ग के प्रकोष्ठ पर भी सैनिक तैनात थे। सातों दुर्गों के मुख्य द्वारों को पार करने पर विशाल मैदान में प्रवेश किया जाता था। अशोक, आम्र, ताल, बहुल, देवदारु, नीम, अगस्त्य, शिवमूल आदि महावृक्षों से वह मैदान सुशोभित था। बीच-बीच में कृत्रिम सरोवरों का निर्माण किया गया था। सरोवरों के तटों पर विभिन्न देशों के पक्षियों का जमाव रहता था। मयूर, चक्रवाक, कोहिल, हंस, मेना, तोता, आर्यस्थूलभद्र और कोशा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003105
Book TitleArya Sthulabhadra aur Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal C Dhami, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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