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उद्दालक एक ओर खड़ा हो गया। सेनापति आज्ञा की प्रतीक्षा करने लगा। स्थूलभद्र ने चाणक्य की ओर देखकर कहा- 'किस ओर जाना है?'
'कुक्कुटाराम की ओर चलें।'
स्थूलभद्र ने सेनापति को आज्ञा देते हुए कहा- 'कुक्कुटाराम विहार की ओर चलना है।'
'सेनापति! हमें वहां सूर्योदय से पूर्व ही पहुंच जाना है।' चाणक्य ने सत्तावाही स्वर से कहा।
नमस्कार कर सेनापति अपने स्थान पर जा बैठा। नौका चलने लगी।
कुछ ही क्षणों में नौका की गति तेज हो गई। स्थूलभद्र और चाणक्य नौका के मध्य में प्रवालजटित एक आसन पर बैठे थे। वायु के मंद-मंद झोंके स्थूलभद्र के दीर्घ बालों का स्पर्श कर रहे थे। चाणक्य की चोटी बंधी हुई थी।
कुछ क्षणों का मौन भंग कर स्थूलभद्र बोला- 'मित्र! तुम्हें ऐसी कौन-सी बात कहनी थी, जिसके कारण मेरे स्वाध्याय में बाधा डाली ?'
____ 'मेरी बात गुप्त नहीं है। हम परस्पर विचारों का विनिमय कर सकें, यही मुख्य बात है।'
'तो हम चर्चा प्रारम्भ करें।'
'हां, मैंने सुना है कि तुमने विवाह करने से इन्कार कर दिया है। क्या यह सच है ?'
'अच्छा, पिताजी ने कहा होगा। तुमने जो सुना है, वह सच है।'
'तुम्हारे इन अपरिपक्व विचारों से पिताजी को बहुत दु:ख होता है। विवाह पाप नहीं है, जीवन का परम कर्तव्य है।' चाणक्य ने सीधी बात कही।
'मैं इसे स्वीकार करता हूं। किन्तु जिस व्यक्ति को विवाह से भी कोई महान कर्त्तव्य करना होता है, वह व्यक्ति विवाह के बंधन में क्यों बंधेगा?' स्थूलभद्र ने प्रश्न की भाषा में कहा।
आर्य स्थूलभद्र और कोशा
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