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________________ मगध साम्राज्य के प्रश्नों को पल भर में समाहित करने वाले महामंत्री शकडाल अपने पुत्र के प्रश्न के समक्ष पराजित हो गए थे । चाणक्य ने शकडाल की व्यथा को समझ लिया । वह बोला, 'पिताजी! स्थूलभद्र अभी एकान्त में ही रह रहे हैं, इसलिए उनका विश्व निर्जनता में ही सृष्ट हुआ है। उन्होंने इस विशाल पृथ्वी का अवलोकन ही नहीं किया है - संसार के रंगीन आकर्षणों से वे अपरिचित हैं। एक दिन जब वे जान पाएंगे कि यह पृथ्वी अनन्त आकर्षणों से भरी पड़ती है, इसमें अनन्त रंगीन स्वप्न हैं, तब वे अपने जीवन - प्रवाह को बदल देंगे । आप निश्चिन्त रहें, मैं उनके जीवन को मधुमय आकर्षणों से भर दूंगा । उनको यौवन की रंगरेलियों से परिचित कराऊंगा - उनके मन की दमित आशंकाओं को जागृत करूंगा। स्थूलभद्र अभी तक अपने अध्यात्मवाद में पूरे रंगे नहीं हैं। यौवन की ऊष्मा जब जीवन में प्रवेश करती है, तब कल्पना के पंखों पर उड़ने वाले युवक कुछेक अव्यावहारिक बातो को जीवन में स्थान दे देते हैं। किन्तु यह स्थायी नहीं होता, अल्पकालिक होता है। स्थूलभद्र का मानसिक परिवर्तन किए बिना मैं तक्षशिला नहीं जाऊंगा। स्थूलभद्र मेरे मित्र हैं, मेरे प्रति उनकी श्रद्धा है। वे मुझे बड़ा भाई मानते हैं। इसलिए वे मेरे साथ स्पष्टता से चर्चा कर सकते हैं। यदि मुझे यह पहले ही ज्ञात हो जाता तो आज तक स्थूलभद्र किसी-न-किसी विवाह - ग्रंथि से बंध जाते। अब आप इस विषय में तनिक भी चिन्ता न करें। मैं इस प्रश्न को अपना प्रश्न बना लेता हूं।' महामंत्री बोले, 'इसीलिए यह बात मैं तुझे सौंप रहा हूँ । मुझे विश्वास है कि तू मुझे इस चिन्ता से मुक्त कर देगा।' गुरु के मुख से ये शब्द सुनकर चाणक्य विनम्र स्वर में बोला, 'आपके आशीर्वाद से....' तत्पश्चात् कुछ विशेष चर्चा कर चाणक्य वहां से चल पड़े। महामंत्री का हृदय भार कुछ हल्का हुआ । आर्य स्थूलभद्र और कोशा Jain Education International For Private & Personal Use Only २६ www.jainelibrary.org
SR No.003105
Book TitleArya Sthulabhadra aur Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal C Dhami, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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