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________________ 'यदि तेरे पर यह प्रभाव पड़ा है तो ऐसा प्रयत्न करना चाहिए कि उसका जीवन-प्रवाह बदले। मगधदेश का महामंत्री-पद ऐसे वैरागियों के हाथ में कैसे सौंपा जा सकता है? मैं तो अब बूढ़ा हो गया हूं। आज मेरे चित्त को जो वस्तु आनन्ददायी होनी चाहिए थी, वही आज मुझे चिन्तातुर बना रही है।' 'ठीक कह रहे हैं आप। मगध के दायित्व का भार उठाना सरल कार्य नहीं है। मुझे लगता है कि उनकी जीवनधारा को बदलने के लिए हमें एक प्रयत्न करना चाहिए।' 'क्या?' ‘किसी रूपवती कन्या के साथ उनका अविलम्ब पाणिग्रहण करा देना चाहिए। यदि मैं चणकपुर नहीं जाता तो आपको यह बात पन्द्रह दिन पहले ही कह देता।' चाणक्य ने समस्या का हल बताया। नि:श्वास छोड़ते हुए महामंत्री ने कहा, 'विष्णु ! क्या तू यह मानता है कि मैंने इस मार्ग को नहीं सोचा था?' चाणक्य ज्ञानमूर्ति शकडाल को निहारता रहा। महामंत्री ने कहा, 'मैंने यह प्रयत्न भी किया। वह विवाह-सूत्र में बंधने के लिए तैयार नहीं है। मालव के महाधर्माध्यक्ष छह महीनों से अपनी कन्या के लिए प्रार्थना कर रहे हैं। बंग के आचार्य भुवनेश्वर भी बार-बार दूत भेज रहे हैं। काशी के विद्यावारिधी भी अपनी कन्या के लिए यहां आये थे। किन्तु स्थूलभद्र विवाह के लिए हां नहीं भरता। जब-जब विवाह की बात आती है, वह यही कहता है-पिताजी! मुझे क्षमा करें। विवाह-सूत्र में बंधकर मैं कभी सुखी नहीं हो पाऊंगा। संसार के प्रति मुझे तनिक भी रुचि नहीं है। ऐसी स्थिति में ऐसा कौन-सा प्रयत्न कारगर हो सकता है, जो उसकी इस विरागपूर्ण विचारधारा को मोड़कर संसार की ओर उन्मुख कर सके ?' कहकर महामंत्री अपने शिष्य की ओर देखने लगे। 'क्या इसके लिए यक्षा ने कोई प्रयत्न किया था?' विष्णु ने कहा। 'अरे, वह तो रो-रोकर थक गई। सातों बहनों ने स्थूलभद्र से कहाभाई! यदि तू विवाह नहीं करेगा तो हम भी कुआंरी ही रह जाएंगी। उत्तर में स्थूलभद्र ने कहा-जैसी तुम्हारी इच्छा । मैं तो विवाह नहीं कर सकूँगा।' __ आर्य स्थूलभद्र और कोशा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003105
Book TitleArya Sthulabhadra aur Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal C Dhami, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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