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आचार्य बोले, 'पुत्री ! इस नृत्य का कभी दुरुपयोग मत करना । तू कला की जीवन्त प्रतिमा है, कला तेरा जीवन है - इसको संभालकर रखना।'
देवी सुनन्दा ने कहा, 'गुरुदेव ! आज मैं बहुत ही भयभीत हो रही थी। मन आकुल-व्याकुल था । '
'सुनन्दा ! यह अनुराग का ही परिणाम है। अब कोशा तेरा स्थान ले सकती है। इस विषय में तुझे प्रयत्न करना है। महाराज को अवश्य ही यह बात कहूंगा।'
कुछ समय बाद आचार्य कुमारदेव वहां से विदा हुए। रूपकोशा वस्त्रगृह में गई। देवी सुनन्दा ने पाकशास्त्री को बुलाकर आवश्यक निर्देश दिए ।
आर्य स्थूलभद्र और कोशा
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