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लिए स्वर्णसिद्धि सहज है, वह महावैज्ञानिक क्या औषधि के प्रयोग से मुनि के प्राणों में स्त्री की भूख, यौवन को भोगने की भूख प्रकट नहीं कर सकता?'
यह सुनकर रूपकोशा हर्ष से उछल पड़ी। वह चित्रा को बांहों में कसकर बोली- 'सखी! धन्य है तुझे। मेरी आशा जरूर फलेगी। आज संध्या के समय हम दोनों उस महापुरुष के पास जाएंगे।'
कोशा की निराशा अदृश्य हो गई। उसमें नयी चेतना प्रकट हुई। उसके नयनों में नयी कामना जाग उठी।
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आर्यस्थूलभद्र और कोशा
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