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________________ ये शब्द कोशा के हृदय को बींध गए। उसने कहा-'आपको कई नृत्य अतिप्रिय थे, उनमें से यह एक नृत्य मैंने प्रस्तुत किया था।' 'ओह, मैंने वह नृत्य देखा ही नहीं!' कोशा अवाक् रह गई। वह विस्फारित नेत्रों से मुनि को देखती रही। उसने और अधिक उत्साह के साथ दिन-प्रतिदिन नये-नये नृत्य प्रस्तुत किए। यह क्रम सवा महीने तक चलता रहा। चातुर्मास के दो मास बीत गए। आधा चातुर्मास पूरा हो गया। वर्षा थक गई, धारा थक गई, वाद्य थक गए, वाद्यकार थक गए, चित्रलेखा बावली हो गई, चित्रा रो पड़ी, रूपकोशा गम्भीर निराशा के समुद्र में डूब गई। किन्तु मुनि का मन चंचल नहीं हुआ। उनका विराग भाव नहीं डिगा। उनके ज्ञान-वैभव पर कोई चोट नहीं हुई। उनके नयनों की शांति और मुखमंडल की सौम्यता और अधिक तेजोमय बनी। निराशा की आग में कोशा झुलस चुकी थी। उसका सारा दिन रुदन में ही बीतता। उसने एक दिन चित्रा से कहा-'चित्रा! अब मेरे में कोई शक्ति नहीं रही है....मेरा मन जीर्ण-शीर्ण हो गया है....मेरा शरीर चकनाचूर हो गया है....बहन! मुझे कोई रास्ता दिखा....स्वामी को प्राप्त करने के लिए मुझे कुछ भी करना पड़े, करूंगी।' निराश चित्रा बोली- 'देवी, मुझे कोई मार्ग नहीं दिख रहा है। मुनि का मनोबल अजेय और प्राण वज्रमय बन गया है। सभी आशाओं और कामनाओं को भस्मसात् कर यह मुनि वीतराग बन गया है। इसे अपनी प्रतिज्ञा से विचलित करना सहज नहीं है।' 'मुनि के प्राण वज्रमय बन गए हैं और मेरे प्राण संहारक जैसे बन गए हैं, चित्रा! क्या कोई ऐसा शस्त्र नहीं है जो मेरे स्वामी की कठोरता को बदल दे?' 'देवी! चालीस दिनों तक आपने क्या-क्या नहीं किया। आपने वह प्रयत्न किया है जो पत्थर में भी प्राण फूंक दे और उसमें भी काम-लालसा जाग जाए....अब तो मुझे कोई आशा नहीं लगती।' २६१ आर्य स्थूलभद्र और कोशा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003105
Book TitleArya Sthulabhadra aur Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal C Dhami, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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