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कोशा यह कहकर अपनी शय्या पर चली गई। आज वह सुकोमल शय्या कांटों-सी तीखी चुभ रही थी।
वर्षा जम गई थी। बिजली की चमचमाहट और मेघ के गर्जारव से रात भयावनी हो गई थी।
और अनिद्रा की चिनगारियों से जलती हुई कोशा शय्या पर पड़ीपड़ी करवटें बदल रही थी।
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आर्यस्थूलभद्र और कोशा
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