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________________ एक संध्या के समय सुकेतु का रथ कोशा के भवन में आ पहुंचा। कोशा चित्रलेखा के साथ नौका-विहार के लिए गई हुई थी। दास-दासियों ने सुकेतु का स्वागत किया। सुकेतु ने कल्पना की थी कि आज उसके स्वागत के लिए कोशा पलकें बिछाये खड़ी होगी और उल्लास भरे हृदय से उसका स्वागत करेगी और आज की रात यौवन के उत्सव में अपूर्व बनेगी। परन्तु..... रात हुई। सुकेतु अपने निवासगृह में कोशा की प्रतीक्षा करता हुआ बेचैन हो रहा था। उसे यह निश्चय था कि नौका-विहार से आते ही कोशा मेरे आगमन की बात सुनकर यहां दौड़ी-दौड़ी आएगी। किन्तु एक प्रहर बीत गया। उसने दासियों से पूछकर जान लिया कि कोशा अपने शयनगृह में चली गयी है। उसने सोचा-संभव है कोशा को मेरे आगमन की सूचना नहीं मिली हो। अनिद्रा, चिंता, आशा, निराशा और कल्पना के जाल में फंसा हुआ सुकेतु जागता रहा। प्रात:काल होते-होते वह निद्राधीन हुआ। जब सुकेतु उठा तब प्रात:काल की तीन घटिकाएं बीत चुकी थीं। स्नान आदि से निवृत्त होकर उसने माधवी से पूछा- 'देवी क्या कर रही हैं?' 'देवी आम्रवाटिका में हैं।' 'मैं उनसे मिलना चाहता हूं।' 'आप आनन्द से वहां जा सकते हैं।' 'देवी के साथ और कौन है?' 'और कोई नहीं, चित्रा उनके साथ है।' 'हुं....हं....मैं आम्रवाटिका में जा रहा हूं। तू मुझे रास्ता बतला।' 'जैसी आज्ञा....' कहकर माधवी आगे चली। सुकेतु जब आम्रवाटिका में आया तब देवी कोशा वहां चार मृगशावकों को सहलाती हुई बैठी थी। चित्रा भी वहीं थी। आर्य स्थूलभद्र और कोशा २४० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003105
Book TitleArya Sthulabhadra aur Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal C Dhami, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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