SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 221
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कोशा की इस बात को स्थूलभद्र नहीं टाल सका। वह बोला'देवी! मैं जा रहा हूं।' स्थूलभद्र उस खण्ड से बाहर जाने के लिए तत्पर हुआ। कोशा बोल पड़ी- 'राजसभा के योग्य वस्त्र आभरण....' कोशा अपना वाक्य पूरा करे उससे पहले ही स्थूलभद्र ने मुसकराकर कहा- 'प्रिये ! ऐसी कोई आवश्यकता नहीं है।' बाद में चित्रा की ओर देखकर कहा- 'चित्रा! अपनी स्वामिनी का चित्त प्रसन्न रखना।' स्थूलभद्र वहां से चला। कोशा आशाभरी नजरों से प्रियतम को जाते देखती रही। उसके मन में आया-राजसभा में ये अवश्य ही दीपित होंगे। जिस पद को प्राप्त करने के लिए देवता भी कामना करते हैं, उस पद को प्राप्त कर अवश्य ही ये स्थिर बनेंगे। उसने चित्रा से कहा-"चित्रा ! तू भी इनके साथ राजसभा में जा और वहां जो घटित हो वह मुझे आकर बता।' 'जैसी आपकी आज्ञा'-कहकर चित्रा खण्ड के बाहर जाने लगी। कोशा तत्काल बोली- 'चल, मैं तेरे साथ नीचे आती हूँ। राजसभा से ये जब लौटेंगे तब महामंत्री बनकर लौटेंगे। मुझे उस समय इनका सत्कार करना होगा। अभी से उसकी तैयारी करती हूँ।' चित्रा के साथ कोशा भी नीचे आयी। वह रथ में बैठे स्थूलभद्र को देखती रही। रथ गतिमान था। आर्यस्थूलभद्र और कोशा २१० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003105
Book TitleArya Sthulabhadra aur Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal C Dhami, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy