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________________ 'ओह!' कहकर स्थूलभद्र खड़ा हो गया और कोशा के पास जाकर उसके कंधों पर हाथ रखकर बोली-'प्रिये ! तेरी इस इच्छा को नियति ही पूरा कर सकती है, मैं नहीं। यदि शाम्ब कापालिक के पास चलना हो तो मैं तैयार हूं।' इतना कहकर स्थूलभद्र ने कोशा का गाढ़ आलिंगन किया। इतने में नीचे से आवाज आयी- 'भोजन तैयार है।' दोनों भोजनगृह की ओर रवाना हो गए।' इधर.... महामंत्री शकडाल ने राजसभा के लिए प्रस्थान करने से पूर्व नमस्कार महामंत्र का स्मरण किया। रथ तैयार था। रथ में बैठ वह राजसभा की ओर चला। मगध की राजसभा। विशाल और सुन्दर । राजसभा का कार्य चल रहा था। मगधेश्वर सिंहासन पर विराजमान थे। उनके पीछे दो परिचारिकाएं चामर डुला रही थीं। महाप्रतिहार हाथ में नंगी तलवार लिये सिंहासन के दोनों पार्यों में खड़े थे। एक था श्रीयक और दूसरा था कीर्तिप्रभ। सम्राट् के पास महामंत्री का आसन था। वह अभी तक खाली पड़ा था। अन्यान्य मंत्री आ पहुंचे थे। वे अपने-अपने आसनों पर बैठ गए थे। प्रतिहारी ने महामंत्री के आगमन की सूचना दी। सम्राट्, महादेवी और राजपुरोहित के अतिरिक्त सब सभासद्महामंत्री के सम्मान में उठे। धीर और गम्भीर चरण रखते हुए महामंत्री ने सभा में प्रवेश किया। महामंत्री ने उस समय सफेद वस्त्र धारण कर रखे थे। उनके ललाट पर श्वेत चंदन का तिलक सौम्य चन्द्रमा की भांति शोभित हो रहा था। अनामिका में वज्रमय अंगूठी चमक रही थी। धीरे-धीरे महामंत्री आगे आए। उनके चरणों में किसी भी प्रकार का प्रकंपन नहीं था। नयनों में भय की रेखा नहीं थी। बदन पर चिन्ता की रेखाएं नहीं थी। वे सदा की भांति प्रसन्न, शांत और गम्भीर दिख रहे थे। आर्य स्थूलभद्र और कोशा १६६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003105
Book TitleArya Sthulabhadra aur Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal C Dhami, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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