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________________ 'शकडाल मित्रों को भेंट देने के लिए जो शस्त्र बनवा रहा है, वे शस्त्र उसके कुटुम्ब के संहारक बनेंगे। मैं एक अपूर्व जाल बिछाता हूं। मैं एक श्लोक की रचना कर तुमको दूंगा। अपने गुप्तचरों के माध्यम से तुम उस श्लोक का प्रचार घर-घर करवा देना। प्रत्येक राज्यसभासद् को भी उस श्लोक का मर्म समझा डालना।' वररुचि ने उत्साह से कहा। 'मुझे लगता है कि आज तुम मदिरापान करके आए हो या भूखे पेट आए हों क्या तुम्हारे श्लोक से ये सारे शस्त्र उड़कर महामंत्री के कुटुम्ब का संहार करेंगे।' 'हां, ऐसा ही होगा। इस श्लोक को प्रचारित करने से सम्राट को यह भान हो जाएगा कि महामंत्री जिन नये शस्त्रों का निर्माण करवा रहा है, वह उन शस्त्रों के आधार पर सम्राट् का नाश कर अपने प्रिय पुत्र श्रीयक को राज्यसिंहासन पर बैठाएगा। सम्राट् के गुप्तचर महामंत्री के घर जाकर खोज करेंगे। शस्त्र-निर्माण की बात सुनकर सम्राट् कुपित हो जाएंगे और उनका कोप महामंत्री के नाश का कारण बनेगा। मेरा श्लोक मात्र काव्य नहीं, किन्तु मंत्र होगा, मंत्र। समझ गए तुम!' सुकेतु ने वररुचि के विचार सुने। उन पर मनन किया। कुछ विश्वास हुआ। वररुचि ने आगे कहा- 'महाराज! तुमको इतना मात्र करना है कि सम्राट के कानों तक मेरा श्लोक बार-बार पहुंचे। शेष सारा नाटक स्वत: हो जाएगा। यह योजना ऐसी है कि हम परदे के पीछे रहेंगे और काम बराबर हो जाएगा। ___ 'कविवर्य! हारा हुआ जुआरी दुगुने जोश से दांव खेलता है। हम अनेक बार हार चुके हैं। फिर एक बार एक जुआ और खेलें । हमारे भाग्य में पराजय तो लिखी है ही, फिर भी विजय की आशा की किरण को पकड़े रखना है।' थोड़े समय पश्चात् वररुचि वहां से चला गया। दो दिन पश्चात् वररुचि ने सुकेतु के हाथों में एक श्लोक देते हुए कहा- 'यह कोई काव्य नहीं, श्लोक नहीं, किन्तु शकडाल के विनाश का मंत्र है। सुनो आर्य स्थूलभद्र और कोशा १७२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003105
Book TitleArya Sthulabhadra aur Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal C Dhami, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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