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चन्द्रमा मध्याकाश से स्थानभ्रष्ट हो चुका था। युग-युग से पराजय के बादलों से थिरा हुआ शशांक क्या कभी अपनी पराजय स्वीकार करेगा?
चन्द्रमा की पराजय पर गंगा की ऊर्मियां हंस रही थीं।
गंगा के किनारे पर स्थित मगध साम्राज्य की राजनर्तकी सुनन्दा का विलास-भवन भी हंस रहा था।
केसरिया उपवस्त्र को छेदकर आने वाला नवयौवना का लावण्य भी हंस रहा था।
चन्द्र पराजित हुआ और चन्द्रवदना विजित हुई। चन्द्रवदना हारी और वीणा के स्वर जीते। और वीणावादक!
उसे यह ज्ञात ही नहीं था कि रूप के सत्त्व के समान (पूर्व भारत की) एक नवयौवना आज वीणा के स्वरों का मधुपान कर चली गई हैअपने वासंती उपवस्त्र में परिचय छिपाती हुई चली गई है। कौन होगी वह नवयौवना?
आर्य स्थूलभद्र और कोशा
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