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२६. वररुचि की पराजय
स्थूलभद्र और देवी कोशा के सुखमय गृहस्थ जीवन के तीन वर्ष बीत गए। इन तीन वर्षों में एक भव्य चित्रशाला का निर्माण सम्पन्न हुआ। ___आचार्य बाभ्रव्य से लेकर कामशास्त्री कोलक पर्यन्त निर्मित सभी कामशास्त्रों को एकत्रित कर देवी कोशा ने उनका तलस्पर्शी अध्ययन किया और एक नये कामशास्त्र का निर्माण हो गया।
चित्रशाला के मुख्य दो भाग थे। एक भाग में नृत्य और संगीत के प्रत्येक अंग और समस्त साधन प्रदर्शित किये गए थे। उसकी भित्ति पर नृत्याभिनय मुद्राएं, रागरूप, तालरूप, वियोगीराग, संयोगीराग आदि के अनेक भव्य चित्र अंकित किये गए थे। प्रत्येक चित्र क्रम से नियोजित किया गया था। शिल्प दृष्टि से नृत्यमंच के स्वरूप का दिग्दर्शन भी कराया गया था। कुछेक चित्र देवी कोशा और आर्य स्थूलभद्र के संयुक्त प्रयत्न से चित्रित हुए थे।
चित्रशाला के दूसरे भाग में कामशास्त्र के विज्ञान का प्रत्यक्ष दर्शन कराया गया था। वहां चित्रित चित्रों में कामविज्ञान के समस्त अंग-उपांग स्फुट रूप से प्रदर्शित थे। ऋतु के अनुसार शयन-व्यवस्था, अंगराग, साज-शृंगार, स्त्री के जातिभेद, नायिका स्वरूप प्रेमोपचार, हाव-भाव, केलिसदन की रचना, भिन्न-भिन्न देशवासी स्त्री-पुरुषों की विशेषताएं आदि काम-विज्ञान के अनेक तत्त्व चित्रांकित किये गए थे। साथ-ही-साथ प्रजनन-विज्ञान के चित्र भी प्रदर्शित किये गए थे। उस भाग में विलास के समस्त साधन भी उपलब्ध थे, प्रदर्शित थे।
दोनों विभागों के निर्माण में लगभग पौने तीन वर्ष का समय लगा था और उसका अनुमानित व्यय सवा करोड़ स्वर्ण-मुद्राएं था। आर्य स्थूलभद्र और कोशा
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