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________________ संग्रहके ग्रन्थों और ग्रन्थकर्ताओंका संक्षिप्त परिचय । १ तत्त्वानुशासन । इस ग्रन्थके कर्ता आचार्य नागसेन हैं। ग्रन्थके अन्तमें वे अपने दीक्षा-गुरुका नाम विजयदेव और विद्या-गुरुओंका नाम वीरचन्द्रदेव, शुभचन्द्रदेव तथा महेन्द्रदेव बतलाते हैं। अपने संघ या गणगच्छादिके विषयमें वे मौन हैं । अपने समयका भी वे उल्लेख नहीं करते हैं । परन्तु ऐसा मालूम होता है कि वे विक्रमकी १३ वीं शताब्दिसे पहले हुए हैं। क्योंकि पण्डितवर अशाधर 'इष्टोपदेशटीका 'में-जो इसी सग्रहमें प्रकाशित की गई है--इस ग्रन्थकेअनेक श्लोक 'उक्तं च' रूपमें उद्धत करते हैं। उदाहरणके लिए इस संग्रहके पृष्ठ २७ में 'गुरूपदेशमासाद्य' आदि दो श्लोकोंको देखिए। ये तत्त्वानुशासनके १९६ और १९७ नम्बरके श्लोक हैं । और पं. आशाधरजीने-जैसा कि आगे बतलाया गया है-विक्रम संवत् १२८५ के पहले इष्टोपदेशकी टीका लिखी है । अतः तत्त्वानुशासनके कर्ता इससे भी पहले हुए हैं । नागसेनके अन्य किसी ग्रन्थसे हम परिचित नहीं। ___ तत्त्वानुशासन उच्चकोटिका और महत्त्वका ग्रन्थ है । मालूम नहीं, इसका यथेष्ट प्रचार क्यों नहीं हुआ। बम्बईके दिगम्बरजैनमन्दिरके पुस्तकालयमें एक बहुत ही जीर्ण प्राचीन गुटका है। उसी परसे इस ग्रन्थकी प्रेसकापी कराई गई है। दूसरी प्रति कहीं प्राप्त न हो सकी, अतएव उक्त एक ही प्रतिके आधारसे इसका संशोधन कराया गया है। २ इष्टोपदेश । इस छोटेसे पर महत्त्वपूर्ण ग्रन्थके कर्ता आचार्य देवनन्दि या पूज्यपाद हैं । श्रीयुक्त पं० काशीनाथ बापूजी पाठक बी. ए. ने एक कनड़ी ग्रन्थके आधारसे प्रकट किया है कि गंगवंशीय दुर्विनीत नामका राजा पूज्यपादका शिष्य था और इस राजाने वि० सं० ५३५ से ५७० तक राज्य किया है । इसके सिवाय देवसेनसूरिने अपने 'दर्शनसार' नामक प्राकृतग्रन्थमें—जो वि० सं० ९९० में रचा गया है—लिखा है कि पूज्यपादके शिष्य वज्रनन्दिने वि० सं० ५२६ में द्राविडसंघकी स्थापना की थी। इन दोनों प्रमाणोंसे मालूम होता है कि देवनन्दि आचार्य विक्रमकी छठी शताब्दिमें हो गये हैं। उनके बनाये हुए सर्वार्थसिद्धिटीका, जैनेन्द्रव्याकरण और समाधितंत्र ये तीन ग्रन्थ प्रसिद्ध हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003104
Book TitleTattvanushasanadi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1919
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size7 MB
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