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________________ जैन-न्याय में हेतु-लक्षण : एक अनुचिन्तन २७ लिए सर्वाधिक उपयोगी माना गया है।' हां एक जगह शास्त्र श्रवण के अनधिकारियों को "हेतुदुष्ट" कहा है किन्तु नारद को पंचावयवयुक्त वाक्य के गुण-दोषों का वेत्ता और "अनुमान विभाग वित्' कहा गया है। कौटिल्य ने इसे विभिन्न युक्तियों के बलाबल का आश्रेय आदि माना है। मनुस्मृति में "तर्क" और "ती" के साथ-साथ "हेतुक", "आन्वीक्षिकी" और "हेतुशास्त्र" शब्द का उल्लेख किया है । प्राचीन जैन-परम्परा में षटलांडागम में "हेतुवाद", स्थानांगसूत्र' में "हेतु" भगवती सूत्र में "अनुमान और अनुयोगसूत्र में अनुमान के विभिन्न प्रभेदों की चर्चा है। इस तरह हमें मानना चाहिए कि जैनागमों में भी "अनुमान' की परंपरा विद्यमान है जो परवर्ती काल में संवद्धित और पल्लवित हुई है। भारतीय अनुमान केवल कार्यकरण रूप बौद्धिक व्यायाम ही नहीं, बल्कि निःश्रेयस का भी साधन है। यही कारण है कि भारतीय अनुमानपरम्परा का जितना विवेचन तर्क ग्रन्थों में पाया जाता है, लगभग उतना ही धर्मशास्त्र, दर्शनशास्त्र एवं पुराण ग्रन्थों में भी है। २. जैन परम्परा में अनुमान षोडागम में श्रुत के नामों में एक नाम "हेतुवाद" भी माना गया है जिसे आचार्य वीरसेन ने "हेतु द्वारा तत्सम्बद्ध अन्य वस्तु का ज्ञान' कहा है, अतः इसे हेतुवाद, हेतुविद्या, तर्कशास्त्र या युक्तिशास्त्र या अनुमानशास्त्र कहा गया है। इसीलिए स्वामी समन्तभद्र ने अनुमान शास्त्र को युक्त्यनुशासन का नाम देकर इसी नाम से एक स्वतन्त्र ग्रन्थ की रचना कर १. वही, ३१८।३५ २. वही, अनुशासन पर्व, १३४।१७ ३. वही, सभापर्व, ५१५२८ ४. अर्थशास्त्र, विद्या समुद्धेश, १११ ५. भूतबलि पुष्पदन्तकृत, षट्खंडागम, ५॥५॥५१ ६. स्थानांग सूत्र, संपा० कन्हैयालाल, व्यावर संस्करण, वि० सं० २०१०, पृ० ३०९,३९० ७. भगवती सूत्र, संपा० कन्हैयालाल, कलकत्ता, ५।३।१९१-८२ ८. अनुयोग सूत्र, मूल सुत्ताणि, संपा० कन्हैयालाल, ब्यावर संस्करण, वि० ___ सं० २०१०, पृ० ५३९ ९. न्याय भाष्य (वात्स्यायन), १।११ पृ० ११ १०. षट्खंडागम, ५॥५॥५१ ११. युक्त्यनुशासन, दिल्ली, वीर सेवा मंदिर पृ० ४८ स्थानांग सूत्र, पृ० ३०९-३१० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003097
Book TitleJain Darshan Chintan Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjee Singh
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages200
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size8 MB
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