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जैन-न्याय में हेतु-लक्षण : एक अनुचिन्तन
१. भारतीय न्याय-परम्परा में अनुमान का विकास क्रम
लिपिबद्ध मूल भारतीय वैदिक वाङमय, विशेषकर ऋग्वेद आदि में "अनुमान" या इसके पर्यायवाची शब्द नहीं मिलते हैं किन्तु उपनिषद्साहित्य में "वाक्योवाक्यम्" शब्द आता है जिसे अनुमान का पूर्व संस्करण कहा जा सकता है। ब्रह्मबिन्दु उपनिषद' में अनुमान के अंगों जैसे "हेतु" और "दृष्टांत", मैत्रायणी' में "अनुमीयते" और सुबालोपनिषद में "न्याय" शब्द आया है। छान्दोग्य के शांकरभाष्य में "वाक्योवाक्यम्" का अर्थ "तर्कशास्त्र" दिया गया है। प्राचीन बौद्ध पाली ग्रन्थ ब्रह्मजालसुत्त' में "ती" एवं 'तर्क' शब्द प्रयुक्त हुए हैं, जो वितंडावाद के लिए आया है । न्याय सूत्र' में न्यायभाष्य में तर्कों को अनुमान नहीं बल्कि उसका अनुग्राहक माना गया है। उघोतकर' ने तर्क, हेतु, न्याय, अन्वीक्षा आदि को अनुमानार्थक ही माना है । भीमाचार्य ने न्याय-कोश' में "तर्क" शब्द अर्थों में "आन्वीक्षिकी विद्या" और "अनुमान" अर्थ दिया है। बाल्मीकि रामायण" में आन्वीक्षिकी का प्रयोग हुआ है जबकि महाभारत" में "आन्वीक्षिकी" के अलावा हेतु, हेतुक, "तर्क विद्या" जैसे शब्दों का भी प्रयोग पाया जाता है। कहीं भारत में 'आन्वीक्षिकी" को परा-विद्या'२ के रूप में तो कहीं मोक्ष के
१. छांदोग्य, ७।१।२ २. ब्रह्म बिन्दु उपनिषद्, निर्णय सागर प्रेस, बही १९३२ श्लोक-९ ३. मैत्रायणी उपनिषद्, नि० सा० प्रे० बम्बई, १९३२, ५॥१ ४. सुबालोपनिषद्, नि० सा० प्रे० बम्बई, १९३२, खंड-२ ५. ब्रह्मजाल सूत्र, १३३२ सम्पा० रायस डेविड ६. न्याय सूत्र (गौतम), ११११३, १।११४० ७. न्याय-भाष्य (वात्सायन), १।११३, १।१।४० ८. न्याय वात्तिक, ११११४० ९. न्याय कोश, बम्बई, प्राच्य विद्या संशोधन मंदिर, १९२८, पृ० ३२१ १०. बाल्मीकीय रामायण, अयोध्या०, १००१३८,३९ ११. महाभारत, शांति पर्व, २१०।२२, १८०४६ १२. वही, ३१५१३४
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