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जनतंत्र और अहिंसा
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का विचार आता है । इसलिये जनतंत्र एवं अहिंसा जीवन के व्यक्तिगत मूल्य ही नहीं, वे नवीन समाज-धर्म के आचार हैं । अहिंसा या जनतन्त्र प्रत्येक व्यक्ति का मूल्य मानता है, प्रत्येक व्यक्ति की प्रतिष्ठा को स्वीकार करता है, जहां हर व्यक्ति अपने भाग्य का निर्माता माना जाता है । इस साम्यभावना को ही राजनीति में हम नियम का राज्य ( Rule of law) और समाजनीति में अहिंसा कहते हैं ।
(ख) मानव - विवेक में आस्था : जब व्यक्ति ही चरम मूल्य है और वही अपने सौभाग्य एवं दुर्भाग्य का निर्णय करने का अधिकारी है, तो उसके विवेक में आस्था रखनी ही होगी । मानव-विवेक में अनास्था वस्तुतः किसी भी प्रकार के शिक्षण और प्रशिक्षण, संस्कार और परिष्कार को निरर्थक और असम्भव सिद्ध कर देती है ।
जनतंत्र यदि विचार - परिवर्तन एवं मत - परिवर्तन की प्रक्रिया है, तो इसके लिए मानव - विवेक पर आस्था रखनी ही होगी । इसके लिए हमें विचार स्वातन्त्र्य को अपनाना ही होगा, जिसके अभाव में चेतनाशून्य जनता तानाशाही का मार्ग प्रशस्त करती है । इसलिये मानवीय विवेक एवं मानवस्वातन्त्र्य पर किये गये प्रत्येक प्रहार अपने आप में जनतंत्र की हत्या का दुष्प्रयत्न तो है ही साथ-ही-साथ यह भयंकर हिंसा भी | विवेक में आस्था शास्त्र के स्थान पर नियम एवं कानून में विश्वास है और अन्ततोगत्वा यह हिंसा में आस्था है ।
(ग) मानवीय करुणा : जनतन्त्र एवं अहिंसा दोनों इस माने में करुणा पर आधारित हैं कि अहिंसा प्रेम का पर्याय और जनतन्त्र के अन्तर्निहित बहुजन हिताय बहुजन सुखाय की उदात्त कल्पना है । वस्तुतः सम्पूर्ण मानवता का एक आबंटित भ्रातृत्व ही जनतन्त्र एवं अहिंसा का आधार है और यही तो करुणा भी है ।
(घ) अभय : विचार - स्वातंत्र्य एवं जनतंत्र के लिए जिस प्रकार निर्भयता आवश्यक है, उसी प्रकार सच्ची अहिंसा भी अभय भावना के बिना असम्भव है । लेकिन, अपवादस्वरूप यह निर्भयता व्यक्ति विशेष को सभी परिस्थितियों में भले ही प्राप्त हो जाए, लेकिन सामान्य व्यक्ति आर्थिक, सामाजिक एवं राजनैतिक भय से आक्रांत रहता है। इसलिये जब तक हम मानव को अभाव, अन्याय और शोषण से मुक्त नहीं कर सकेंगे, निर्भयता एक दिवास्वप्न होगी । भयाक्रांत जनतंत्र जनतन्त्र का मखौल है और भयाकुल अहिंसा तो अहिंसा है ही नहीं ।
(च) समन्वय : समन्वय सृष्टि का और सहकार समाज का नियम है । जनतांत्रिक दृष्टि वस्तुतः आग्रह के स्थान पर अनाग्रह, विरोध की जगह समन्वय एवं संघर्ष के स्थान पर सहकार और संतुलन के लिए निरन्तर
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