________________
१४०
जैनदर्शन : चिन्तन-अनुचिन्तन स्थान घेरने वाले परमाणु की अवधारणा ध्वस्त हो गयी थी तो लोगों को लगा कि भौतिकवाद की जड़ ही कट गयी । लेनिन ने स्पष्टीकरण किया था कि दार्शनिक मैटर का उस मैटर से कोई ताल्लुक नहीं जो स्थान घेरता है या जिसका वजन है । दार्शनिक मैटर तो एक संप्रत्यय (concept) है जिसका अर्थ है कि मानव चेतना के बाहर वस्तु की स्वतंत्र स्थिति । यह स्थिति मूल में तरंगमय है या ठोस, इसका दार्शनिक मैटर से बहुत मतलब नहीं। अपनी पुस्तक (Materialism and Empirio Criticism Page-84) में लेनिन ने स्पष्ट कहा है कि ज्ञान की प्रगति के क्रम में 'मैटर' का जो भी रूप प्रस्तुत होगा, दार्शनिक मैटरवादी उसे ही स्वीकार करेंगे। श्री अरविंद ने इसी को दूसरे शब्दों में कहा कि मैटर इन्द्रिय ज्ञान से परे है । सांख्य के प्रधान की तरह यह मूल-तत्त्व भी संप्रत्यय रूप ही है। श्री अरविन्द के अनुसार आज हम ऐसी जगह पर पहुंच गये हैं, जहां मूल तत्त्व और मूल शक्ति के रूप में केवल काल्पनिक विभेद रह गया है। लाइफ डिवाइन, भाग-१ पृ०-६७ के अनुसार यों तो प्राचीन काल से अध्यात्म चितन में जड़-चेतन के अद्वैत की भावना निकलती थी किन्तु उस युग के विज्ञान की अविकसित धारा में यह शक्ति नहीं थी कि इसके लिए दृढ़ आधार मिल सके, इसीलिये “एकमेवाद्वितीयम्, एकोऽहंद्वितीयोनास्ति', 'ला इलाहिलिल्लाह' आदि सूचक अद्वैत-चिंतन विद्या-विलास या गगन-विहार ही सिद्ध हुए, भले ही कुछेक ऋषियों एवं मुनियों ने अपरोक्षानुभूति के माध्यम से इसको व्यक्तिगत जीवन में अनुभव किया हो । आज भी जड़-चेतन की एकता विज्ञान ने सुदृढ़ भूमि पर स्थापित नहीं की है, लेकिन जिसके लिये पिछले दो हजार वर्षों से दार्शनिक और वैज्ञानिक प्रयत्न करते हुए दृश्यमान अनेकताओं के बीच एकता की स्थापना कर रहे थे, आज आधुनिक विज्ञान ने उसे काफी सफल कर दिया है। प्रसिद्ध वैज्ञानिक ए. एन. व्हाइटहैड कहता है-"अपने चारों ओर जिस दुनिया को हम देखते हैं उसका मानसिक जगत् से सम्बन्ध हम जितना समझते हैं उससे कहीं ज्यादा है।" इसी को लेनिन अपनी व्याख्या से और भी उजागर करते है कि “मैटर की मौलिक बनावट में ही चेतना का मूल तत्त्व मिला हुआ है।" यूजेन विगनर ने भी कहा है कि दो प्रकार के तत्त्व होते हैं-"अपनी चेतना का सत्य' और इसके अतिरिक्त जो सत्य है । (Existence of My Consciousness and existence of others' Consciousness) लेकिन ये दोनों निरपेक्ष एवं स्वतंत्र नहीं बल्कि सापेक्ष हैं। सबकुछ अभिसांज्ञिक या सांप्रत्ययिक है।" सीरिल हिरीशेलवुड ने स्पष्ट कहा- "अन्तस्तत्व को अस्वीकृति अपनी तात्कालिक प्रत्यक्षानुभूति और उसके अस्तित्त्व की अस्वीकृति है।" मैक्सबीन ने इसीलिये सैद्धांतिक पदार्थ विज्ञान को वास्तविक दर्शन कहा है। न्यूटन-आइन्स्टीन की कोटि के पदार्थ वैज्ञानिक नील्स बोर ने माण्विक भौतिकी (Atomic Physics)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org