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दर्शन (सामान्य बोध) का विशद विवेचन । १०. आठ प्रकार के कर्म, उनकी निष्पत्तियां, उनका स्वरूप-वर्णन और
कर्मबन्ध के विविध हेतुओं का उल्लेख । • कर्म की दस मुख्य अवस्थाओं का विवरण । • आत्मा और कर्म के सम्बन्ध की विशद जानकारी।
• कार्य-निष्पत्ति के पांच कारणों का उल्लेख। ११. आत्म-विकास की चौदह भूमिकाओं (गुणस्थानों) का विवरण और
उनके अधिकारियों की चर्चा । गुणस्थानों का कालमान आदि । १२. इन्द्रियों के विषय और उनका स्वरूप। १३. दस प्रकार का मिथ्यात्व । १४. नौ तत्त्व और उनके भेद-प्रभेद। मोक्ष के चार साधक-तत्त्वों का
विश्लेषण। १५. आत्मा के अस्तित्व के साधक-बाधक प्रमाण । आत्मा अमूर्त है,
फिर पदार्थ कैसे? आत्मा का परिमाण आदि-आदि।। १६. चौबीस दण्डकों (कर्म-फल भोगने के स्थानों) का निर्देश और
भेद-प्रभेद। १७. छह लेश्याएं और उनके लक्षण । १८. तीन प्रकार की दृष्टियों का विवेचन ।
• सम्यक्त्व के लक्षण, दूषण और भूषण | १६. चार प्रकार के ध्यान का विवरण। २०. विश्व के घटक छह द्रव्यों का विवेचन। • काल-विभाग, पुद्गल द्रव्य की विभिन्न अवस्थाएं और उनका
स्वरूप। २१. दो राशि-जीव और अजीव का वर्णन। २२. श्रावक के बारह व्रतों का स्वरूप और उनकी धार्मिक, सामाजिक
एवं राष्ट्रीय दृष्टि से उपयोगिता। २३. पांच महाव्रतों का स्वरूप। २४. त्याग के विभिन्न प्रकारों का वर्णन, त्याग करने के विविध पथ। २५. पांच प्रकार के चारित्र और उनका स्वरूप-वर्णन। इस प्रकार पचीस बोलों में सम्यक् ज्ञान, सम्यक् दर्शन और सम्यक्
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