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जीव-अजीद
अंक | भंग उठे करण योग
प्रत्याख्यान के ४६ भंगों का विवरण
(३५) करूं नहीं, अनुमोदूं नहीं-मन से, काया से (३६) करूं नहीं, अनुमोदूं नहीं-वचन से, काया से (३७) कराऊं नहीं, अनुमोदूं नहीं-मन से, वचन से (३८) कराऊं नहीं, अनुमोदूं नहीं-मन से, काया से (३६) कराऊ नहीं, अनुमोदूं
नहीं-वचन से, काया से। २३ ३ २ ३ (४०) करूं नहीं, कराऊं नहीं-मन से, वचन से, काया से
(४१) करूं नहीं, अनुमोदूं नहीं-मन से, वचन से, काया से
(४२) कराऊं नहीं, अनुमोदूं नहीं-मन से, वचन से, काया से। ३१ ३ ३ १ (४३) करूं नहीं, कराऊं नहीं, अनुमोदूं नहीं-मन से
(४४) करूं नहीं, कराऊं नहीं, अनुमोदूं नहीं-वचन से
(४५) करूं नहीं, कराऊं नहीं, अनुमोदूं नहीं-काया से। ३२ ३ ३ २ (४६) करूं नहीं, कराऊं नहीं, अनुमोदूं नहीं-मन से, वचन
से (४७) करूं नहीं, कराऊं नहीं, अनुमोदूं नहीं-मन से, काया से (४८) करूं नहीं, कराऊं नहीं, अनुमोदूं नहीं-वचन
से, काया से। ३३ १ ३ ३ (४६) करूं नहीं, कराऊं नहीं, अनुमोदूं नहीं-मन से, वचन
से, काया से। कुल योग ४६
मुनि हिंसा आदि पापों का त्याग नौ कोटि से करता है। श्रावक प्रायः दो कोटि से लेकर आठ कोटि तक त्याग करते हैं।
करना-मन से, वचन से, काया से, कराना-मन से, वचन से, काया से, अनुमोदन अर्थात् समर्थन करना-मन से, वचन से, काया से--ये तीनों एक ही श्रेणी में हैं, हिंसा करने वाला हिंसक है, हिंसा कराने वाला भी हिंसक है और हिंसा का समर्थन करने वाला, हिंसा को अच्छा समझने वाला भी हिंसक है। इसी प्रकार मन से हिंसा करने वाला हिंसक है, वचन से हिंसा करने वाला हिंसक है और काया से हिंसा करने वाला भी हिंसक है।
करने वाले, कराने वाले और अच्छा समझने वाले के मन, वचन और काया का सम्बन्ध करने से नौ भगे (विकल्प) बन जाते हैं। कर्म लगने के ये नौ मार्ग हैं। त्याग के द्वारा इन्हें रोका जाता है। इनके निरोध को संवर कहते हैं।
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