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________________ ४ वक्रगति का आधार उत्पत्ति क्षेत्र है। जब उत्पत्ति - क्षेत्र मृत्यु- क्षेत्र की सम-श्रेणी में होता है तो जीव एक समय में वहां पहुंच जाता है। यदि उत्पत्ति क्षेत्र विषम-श्रेणी में होता है तो वहां पहुंचने में जीव को एक, दो या तीन घुमाव करने पड़ते हैं। जीव-अजीव ऋजुगति से स्थानान्तर करते समय जीव को नया प्रयत्न नहीं करना पड़ता। वह पूर्व-शरीर को छोड़ता है तब उसे उस (पूर्व-शरीर) से उत्पन्न वेग मिलता है और वह धनुष से छूटे हुए बाण की तरह सीधा नये स्थान में पहुंच जाता है। वक्रगति घुमाववाली होती है। इसमें घूमने का स्थान आते ही पूर्व - देह-जनित वेग मन्द पड़ जाता है और सूक्ष्म शरीर (कार्मण - शरीर) द्वारा जीव नया प्रयत्न करता है। यह कार्मण योग कहलाता है। घुमाव के स्थान में जीव कार्मण-योग के द्वारा नया प्रयत्न करके अपने गन्तव्य में पहुंच जाता है। अन्तराल गति का कालमान जघन्य एक समय और उत्कृष्ट चार समय का है। जब ऋजुगति हो तब एक समय और जब वक्रगति हो तब दो, तीन या चार समय लगते हैं। जिस वक्रगति में एक घुमाव हो, उसका कालमान दो समय, जिसमें दो घुमाव हों, उसका कालमान तीन समय और जिसमें तीन घुमाव हों, उसका कालमान चार समय का होता है। मोक्षगति में जाने वाले जीव अन्तरालगति के समय सूक्ष्म और स्थूल सब शरीरों से मुक्त होते हैं । अतः उन्हें आहार लेने की जरूरत नहीं होती । संसारी जीव सूक्ष्म-शरीर सहित होते हैं। अतः उन्हें आहार की आवश्यकता होती है । ऋजुगति करने वाले जीव जिस समय में पहला शरीर छोड़ते हैं उसी समय में दूसरे जन्म में उत्पन्न हो आहार लेते हैं । किन्तु दो समय की एक घुमाववाली, तीन समय की दो घुमाववाली और चार समय की तीन घुमाववाली वक्रगति में अनाहारक स्थिति पायी जाती है। क्रमश: पहली का पहला, दूसरी का पहला और दूसरी तथा तीसरा का दूसरा और तीसरा समय अनाहारक अर्थात् आहार-शून्य होता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003096
Book TitleJiva Ajiva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages170
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size7 MB
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