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२०६ : भिक्षु विचार दर्शन
आचार्य भिक्षु अप्रमत्त जीवन जीते रहे और उनका मरण भी अप्रमत्त दशा में हुआ । मध्य जीवन में भी वे अप्रमत्त रहे इसलिए उनका आदि, मध्य और अन्त - ये तीनों ही ज्योतिर्मय हैं ।
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यह मेरी कृति उनके कुछेक ज्योतिकणों से आलोकित है। उनके प्रकाशपुंज जीवन और ज्योतिर्मय विचारों को शब्दों के संदर्भ में रखना सहज-सरल नहीं है । मैंने ऐसा यत्न करने का सोचा ही नहीं । परम श्रद्धेय आचार्य श्री तुलसी की अन्तःप्रेरणा थी कि मैं महामना आचार्य भिक्षु के विचार- दर्शन पर कुछ लिखूं। उनके शुभाशीर्वाद का ही यह सुफल है कि मैं आचार्य भिक्षु के विचार - दर्शन की एक झांकी प्रस्तुत कर सका और तेरापंथ द्विशताब्दी के पुण्य अवसर पर उसके प्रवर्तक को मैं अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित कर सका ।
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