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अनुभूतियों के महान् स्रोत : २०५ उसका मध्य कैसे हो? मनुष्य की कृति की आदि भी होती है और अन्त भी होता है। इसलिए उसका मध्य भी होता है। ____ 'भिक्षु विचार दर्शन' यह एक मनुष्य की कृति है। इसके आदि में एक महापुरुष के जीवन का परिचय है और इसके अन्त में एक महापुरुष की सफलता की कहानी है तथा इसके मध्य में सफलता के साधन-सूत्रों का विस्तार है। आदि का महत्त्व होता है और अन्त का उससे भी अधिक, पर ये दोनों संक्षिप्त होते हैं। लम्बाई-चौड़ाई मध्य में होती है। सफलता जीवन में होती है, पर मृत्यु सबसे बड़ी सफलता है। जिनकी मृत्यु उत्कर्ष में न हो, आनन्द की अनुभूति में न हो, उनके मध्य-जीवन की सफलता विफलता में परिणत हो जाती है। ___ आचार्य भिक्षु का सूत्र था-ज्योतिहीन जीवन भी श्रेय नहीं है और ज्योतिहीन मृत्यु भी श्रेय नहीं है। ज्योतिर्मय जीवन भी श्रेय है और ज्योतिर्मय मृत्यु भी श्रेय है।
वीर-पत्नी विदुला ने अपने पुत्र से कहा-“बिछौने पर पड़े-पड़े सड़ने की अपेक्षा यदि तू एक क्षण भी अपने पराक्रम की ज्योति प्रकट करके मर जाएगा तो अच्छा होगा।"२
प्रमादपूर्ण जीवन और मृत्यु में क्या अन्तर है? आचार्य भिक्ष रात्रिकालीन प्रवचन कर रहे थे। आसोजी नाम का श्रावक सामने बैठा-बैठा नींद ले रहा था। आपने कहा--"आसोजी! नींद लेते हो?' ओसोजी बोले-"नहीं, महाराज!' और फिर नींद शुरू कर दी। आपने फिर कहा-“आसोजी, नींद लेते हो?' वही उत्तर मिला--"नहीं महाराज?' नींद में घूर्णित आदमी सच कब बोलता है? अनेक बार चेताने पर भी आसोजी ने नकारात्मक उत्तर दिया। नींद फिर गहरी हुई और आपने कहा-“ओसोजी! जीते हो?' उत्तर मिला “नहीं महाराज!'३ इस उत्तर में कितनी सचाई है। आदमी प्रमादपूर्ण जीवन जीकर भी कब जीता है?
१. (क) नैवाग्रं नावरं यस्य, तस्य मध्यं कुतो भवेत्। (माध्यमिक कारिका ११/२)
(ख) जस्स नत्थि पुरातच्छा, मज्झे तस्स कओ सिया। (आचारांग १/४/४)
(ग) आदांवन्ते च यन्नास्ति, वर्तमानेऽपि तत्तथा। (माण्डूक्य कारिका २/६) २. मुहूर्त ज्वलितं श्रेयो, न च धूमायितं चिरम्। (महाभारत, उद्योग पर्व १३२/१५) ३. भिक्खु दृष्टान्त, ४८, पृ. २१
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