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क्षीर-नीर : १२७
उस व्यक्ति को भी इसी प्रकार की कठिनाई का सामना करना पड़ता है, जो आध्यात्मिक और लौकिक कार्यों का मिश्रण करता है। ____ आचार्य भिक्षु के अभिमत में "मिश्रण' अनुचित है। इसका विरोधी विचार समाज-सेवियों का है। उनके अभिमत में सामाजिक, नैतिक और आध्यात्मिक पहलुओं को अलग-अलग मानना अनुचित है। इन दिनों हम लोगों में जीवन के टुकड़े करने की आदत पड़ गई है। सामाजिक पहलू अलग, नैतिक पहलू अलग, आध्यात्मिक पहलू अलग-इस तरह अलग-अलग पहलू बनाए गए हैं। उसका परिणाम यह हुआ है कि सामाजिक क्षेत्र में काम करने वाले नीति-विचार के बारे में सोचते नहीं, नीति का काम करने वाले समाज के मसले हाथ में नहीं लेते और अध्यात्मवादी दोनों तरफ ध्यान नहीं देते। इस तरह टुकड़े करके हमने जीवन को छिन्न-विछिन्न कर दिया
ये दोनों विचार परस्पर-विरोधी हैं। एक की दिशा है कि सामाजिक और आध्यात्मिक कार्यों का मिश्रण मत करो, दूसरे की दिशा है कि इन्हें बांटकर जीवन के टुकड़े मत करो। इन दोनों दिशाओं में से प्रश्न उठते हैं-क्या जीवन विभक्त ही है? क्या जीवन अविभक्त ही है? एकान्त की भाषा में इसका उत्तर नहीं दिया जा सकता और यदि दिया जाए तो वह सच नहीं होगा। इसका यथार्थ उत्तर होगा कि वह विभक्त भी है और अविभक्त भी। वह विभक्त इसलिए है कि सारी प्रवृत्तियां एक ही जीवन में होती हैं। विभाजन प्रवृत्तियों का होता है, उनके आधार का नहीं। एकता आधार में होती है, उनकी प्रवृत्तियों में नहीं। दोनों के समन्वय की भाषा यह होगी कि आधार होने के नाते जीवन एक है अविभक्त है और उसमें अनेक कार्य होते हैं, इस दृष्टि से वह अनेक है, विभक्त है। भगवान् महावीर ने तीन पक्ष बतलाए-अधर्म-पक्ष, धर्म-पक्ष और मिश्र-पक्ष। हिंसा और परिग्रह से जो किसी प्रकार निवृत्त नहीं हैं वे अधर्म-पक्ष में समाते हैं, उनसे जो सर्वथा निवृत्त हैं, वे धर्म-पक्ष में हैं और जो लोग किसी सीमा तक उनसे निवृत्त भी हैं और शेष सीमा में निवृत्त नहीं भी है, वे भी अधर्म-पक्ष में ही
१. विनोबा प्रवचन, पृ. ४४० २. सूत्रकृतांग, २-१
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