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मोक्ष-धर्म का विशुद्ध रूप : १२३ बतलाना भिन्न-भिन्न भाषाएं हैं। इनका एक ही भाषा में समावेश नहीं होता।
२. व्रताव्रत, ३.३६-४३:
दान देतां कहे तूं , मत दे इण ने, तिण पाल्यो निषेध्यो दानो । पाप हुतो ने पाप बतायो, तिणरो छे निरमल ग्यानो रे॥ असंजती ने दांन दीयां में, कहि दीयो भगवंत पापो रे। त्यां दान ने वरज्यो निषेध्यो नाही, हुंती जिसी कीधी थापो रे॥ किण ही साधु कह्यो आज पछे तू, म्हारे घर कदे मत आयो रे। किण ही एक करडा वचनज बोल्यो, हिवे साधु किसे घर माहे जावे रे॥ साधां ने वरज्यों तिण घर में न पेसे, करडा कह्या तिण घर माहे जावे रे। निषेध्यो ने करडो बोल्यो ते, दोन एकण भाषा में न समावे रे॥ ज्यूं कोई दान देतां वरज राखे, कोइ दीधां में पाप बतावे रे। ए दोनई भाषा जुदी-जुदी छे, ते पिण एकण भाषा में न समावे रे॥
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