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मोक्ष-धर्म का विशुद्ध रूप : १०७ जो कोई भी व्यक्ति संयम और असंयम की कसौटी से धर्म और अधर्म को कसेगा उसके सामने वे ही निष्कर्ष आयेंगे जो आचार्य भिक्षु के सामने आए थे। हम करुणा की कसौटी से धर्म और अधर्म को परखें तो उन निष्कर्षों से हमारा मतभेद कैसे नहीं होगा, जो संयम की कसौटी से परखने पर निकलें? ___ खाने वाले और लेने वालों का पाप तथा खिलाने वाले और देने वाले को धर्म होता है, यह विचित्र कसौटी है। - आचार्य भिक्षु ने कहा-भगवान् ! मैंने यह समझा है और इसी तुला से तोला है कि जिसे करना धर्म है उसका कराना और अनुमोदन करना भी धर्म है और जिसे करना अधर्म है उसका कराना और अनुमोदन करना भी अधर्म है।
वृक्ष को काटने में पाप है तो उसे काटने के लिए कुल्हाड़ी देने और उसका अनुमोदन करने में भी धर्म नहीं है।
गांव जलाने में पाप है तो उसे गांव जलाने के लिए अग्नि देने और उसका अनुमोदन करने में भी धर्म नहीं है।
१. व्रताव्रत, ७.१६, २४
जब जीमण वाला ने पाप बतावे, हिंसा करण वाला ने कहे छे पापी। जीमावण वाला ने धर्म कहे छे, आ सरधा भेषधार्थी थापी। ते देण वाला ने तो धर्म बताये, लेवाल ने तो कहे पापज होवे।
तो धर्म करण ने मूढ अग्यानी, सर्व सामग्री ने काय डबोवे॥ २. वही, १२.३३ :
जीव खाधां खवायां भलो जीणीयां, तीनूई करणां पाप हो।
आ सरधा परूपी छे आपरी, ते पिण दीधी आगन्यां उथाप हो। ३. वही, १५.४८ :
रूंख बाढणने साझ कुहाडो दीधो, तिण कुहाडा सूं रूंख बाढ छे आणो।
रूंख बाढे तिणने साज दीयो छे, त्यां दोयां ने एकंत पापज जाणो। ४. वही, १५-५०, ५३
गाम बालण ने साझ अगन रो दीधो, तिण सूं गाम बोले छे आणो। गाम बाले तिणने साझ देवे तिणने, यां दोयां रो लेखो बरोवर . जाणो॥ पाप करण रो साझ देसी तिणने, एकंत पाप लागे छे जाणो। पाप रो साझ दीयां नहीं धर्म ने मिश्र, समझो रे समझो थे मूढ अयाणो।
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