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________________ मोक्ष-धर्म का विशुद्ध रूप : १०५ यह अपना-अपना दृष्टिकोण है। एक राजा की रानी एक दिन गवाक्ष में बैठी-बैठी राजमार्ग की ओर झांक रही थीं उस समय एक युवक उधर से जा रहा था। संयोगवश दोनों की दृष्टि मिल गई। युवक की सुन्दरता से रानी खिंच गई और रानी के सौन्दर्य ने युवक को मोह लिया। दोनों की तड़प ने उपाय निकाल लिया। वह युवक ‘फूला मालिन', जो रनिवास में पुष्पहार लाया करती थी, की पुत्रवधू बनकर महलों में आने लगा। एक दिन षड्यन्त्र का भण्डाफोड़ हो गया। राजा ने रानी और युवक को इसलिए मृत्युदण्ड दिया कि वे दुराचार करते थे; मालिन को इसलिए मृत्युदण्ड दिया कि वह दुराचार करा रही थी। राजाज्ञा से वे बाजार के बीच बिठा दिए गए। राजपुरुष गुप्त रूप से खड़े थे। जो लोग उन्हें धिक्कारते, वे चले जाते और जिन्होंने उनकी प्रशंसा की, उन्हें पकड़ लिया गया। राजा ने उन्हें भी इसलिए मृत्युदण्ड दिया कि वे दुराचार का अनुमोदन कर रहे थे। एक आदमी कोई कार्य करता है, दूसरा उसे करवाता है और तीसरा उसका अनुमोदन करता है-ये तीनों एक ही श्रेणी में आते हैं। करना मन, वाणी और काया से होता है। कराना मन, वाणी और काया से होता है। अनुमोदन मन, वाणी और काया से होता है। इन्हें परिभाषा के शब्दों में करण-योग' कहा जाता है। आचार्य भिक्षु ने कहा-जो लोग असंयम के सेवन में धर्म बतलाते हैं, वे करण-योग का विघटन करते हैं। एक व्यक्ति असंयम का आचरण स्वयं करे, दूसरा दूसरों एक कहे व्रत चोखा पालें, ज्यूं कटे आठोइ कर्मों रे। काल अनादि रे भमते-भमते, पायो जिणवर धर्मो रे॥ एक कहे तूं आगार सेवे, सचित्तादिक सर्व संभाली रे। जतन घणां कीजे डीलां रावले कूटंब तणी प्रतिपाली रे॥ व्रत पालण री आग्या दीधी, ए तो धर्म रो मिंत्री मोटो रे। अविरत आग्या दीधी तिण ने, ग्यानी तो जाणे खोटो. रे।। १. व्रताव्रत, १.६ : करण जोग विगटावे अग्यानी, लाग रह्या मत झूठे रे। न्याय करे समझावे तिण सू, क्रोध करे लडवा उठे रे॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003095
Book TitleBhikshu Vichar Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages218
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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