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________________ २४६ कैसे सोचें? इन सारी गहराइयों में जानने का माध्यम है-प्रेक्षा। यह चिन्तन भी स्वाभाविक है कि एक बार, दो बार या चार बार शरीर की प्रेक्षा या चैतन्य केन्द्रों की प्रेक्षा कर चुकने पर बार-बार वह प्रेक्षा क्यों की जाए ? कितनी बार की जाए ? यह प्रश्न होता है, किन्तु यह जान लेना चाहिए कि प्रत्येक बात के साथ इतनी सूक्ष्मताएं जुड़ी हुई हैं कि हम दो-चार-दस बार में केवल कुछेक पर्यायों को ही जान पाते हैं। पर्याय अनन्त हैं। एक-एक तथ्य के अनन्त-अनन्त पर्याय हैं। अनन्त रूप हैं। उन्हें ज्ञात करने के लिए एक जीवन तो क्या अनेक जीवन खपाने पड़ सकते हैं। यदि प्रेक्षा को ठीक से समझ लिया जाय तो आदमी उस कठिनाई से, उस तर्क से सहजतया छूट सकता है, जो तर्क हमारी बीमारियों को पैदा करता है, बुढ़ापे को जल्दी लाता है और अकाल मृत्यु को निमंत्रित करता है। उस तर्क के साथ भय जुड़ा हुआ होता है। वह भय यदि छूट जाए तो रोग भी आ सकता है, बुढ़ापा भी आ सकता है, मौत भी आ सकती है, किन्तु उसके प्रारम्भ में भी अभय जुड़ा हुआ रहेगा, मध्य में भी अभय जुड़ा हुआ रहेगा और अन्त में भी अभय जुड़ा हुआ रहेगा। तब न मौत का कष्ट होगा, न रोग का कष्ट होगा और न बुढ़ापे का कष्ट होगा। उस अवस्था में रोग और बुढ़ापा आएगा भी तो कम मात्रा में। उस मात्रा का पता ही नहीं चलेगा। भय की प्रतिक्रिया से बचने के लिए प्रेक्षा के आलम्बन बहुत ही महत्त्वपूर्ण साधन हैं। भय की चौथी प्रतिक्रिया है-विस्मृति कमजोर होने लग जाती है। आज बूढ़े नहीं, छोटे-छोटे किशोर आते हैं और स्मृति कमजोर होने की शिकायत करते हैं। बड़ा आश्चर्य होता है उनकी बातें सुनकर । अस्सी वर्ष का बूढ़ा कहे कि उसकी स्मृति कमजोर हो गई है तो वह बात समझ में आ सकती है, किन्तु बारह वर्ष का किशोर जब स्मृति-दौर्बल्य की बात कहता है तब आश्चर्य होता है। इसका मूल कारण है कि भय जीवन में इस प्रकार घुलमिल गया है कि वह सारे दोष उत्पन्न कर रहा है। चीनी जब दूध में घुल जाती है तब उसके स्वतंत्र अस्तित्व का पता नहीं चलता, किन्तु पीने पर दूध की मिठास से उसके अस्तित्व को जान लिया जाता है। इसी प्रकार भय जीवन में इतना घुल गया है कि उसका खोज निकालना कठिन है, परन्तु जब विस्मृति आदि को देखा जाता है तब यह निश्चित हो जाता है कि जीवन में कोई न कोई गहरा भय व्याप्त है। भय के कारण हमारे स्मृतितंतु, ज्ञानतंतु सिकुड़ जाते हैं। उनके सिकुड़ने से स्मृति कमजोर हो जाती है। भय की पांचवी प्रतिक्रिया है-पागलपन। आदमी पागल बनता है, विक्षिप्त होता है। उसके अनेक कारण हो सकते हैं। किन्तु सबसे बड़ा कारण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003094
Book TitleKaise Soche
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size12 MB
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