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________________ २४४ कैसे सोचें ? सचाई को जानने के लिए गहराई में जाना होता है। जो व्यक्ति सन्नाई को जानना चाहता है, पर गहरे डुबकियां लेना नहीं चाहता, वह कभी सच्चाई तक नहीं पहुंच पाता। जिन्होंने सत्य का साक्षात्कार किया है वे गहरे में उतरे हैं। प्रेक्षा गहराई में जाने का तत्त्व है। पहले त्वचा को देखा। त्वचा में क्या-क्या हो रहा है ? आपको लगता होगा कि त्वचा में क्या है? उसे क्या देखना ? वह तो सामने है। ऐसा नहीं है। यदि त्वचा के विषय में पूरा शरीरशास्त्रीय विश्लेषण किया जाए तो यह ज्ञात होगा कि त्वचा के फंक्शन को समझने के लिए कम से कम दस दिन पूरा समय लगाना पड़ेगा। इतने काम हैं चमड़ी के। त्वचा की प्रेक्षा करो। फिर त्वचा के भीतर चलो। भीतर तो बहुत बड़ा खजाना है। भीतर दस प्राण हैं-प्राण की दस शक्तियां हैं। पांच इन्द्रियों की पांच प्राणशक्तियां, मन की प्राणशक्ति, वचन की प्राणशक्ति, शरीर की प्राणशक्ति, श्वासोच्छ्वास की प्राणशक्ति और जीवनीशक्ति-ये दस प्राण की शक्तियां हैं। उनका अनुभव करो। प्राण के प्रकम्पनों का अनुभव करो।। प्राण के प्रकम्पन सहजतया पकड़ में नहीं आते। जब तक हमारा संवेदन सूक्ष्म नहीं बन जाता तब तक प्राणों के प्रकम्पनों को पकड़ा नहीं जा सकता। संवेदन सूक्ष्म होता है तो वे पकड़ में आ जाते हैं। कितने प्रकार के प्रकंपन हो रहे हैं। सारे प्रकंपन ही प्रकंपन । कहीं ऐसा ठोस कुछ भी नहीं है जो प्रकंपन न हो। फिर श्वास को देखना है। केवल श्वास को नहीं। उसके साथ प्राण भी है। श्वासप्राण श्वास का आकर्षण कर रहा है, श्वासप्राण श्वास का रेचन कर रहा है। हमें केवल श्वास का ही अनुभव नहीं करना है, श्वास को संचालित करने वाली प्राणशक्ति-श्वासप्राण का अनुभव करना है। यह बहुत सूक्ष्म कार्य हो जाएगा। श्वास स्थूल है। वह हमारी समझ में आता है। अंगुली लगाई, स्पर्श हुआ, पता लग जाएगा कि कोई चीज आ रही है, जा रही है। यह तो कोरा श्वास हुआ। श्वास के परमाणु हुए किन्तु उन्हें कौन ले जा रहा है। शरीरशास्त्रीय मान्यता है, अध्यात्म की मान्यता है कि यह सारा कार्य श्वासप्राण के द्वारा हो रहा है। यदि श्वास का प्राण चला जाए, श्वास की प्राणशक्ति समाप्त हो जाए तो श्वास न आ सकता है और न जा सकता है, फिर चाहे शरीर विद्यमान रहे, रेस्पिरेटरी सिस्टम बना रहे। हम बोल रहे हैं, भाषा निकल रही है। भाषा का रेचन हो रहा है, पर भाषा तो बोलने वाली है नहीं। जो बोली जा रही है वह तो है भाषा और जिसके द्वारा बोली जा रही है वह है वचनप्राण, वचन की शक्ति । वचन का उच्चारण हो रहा है इसलिए वचनप्राण है। यदि वह प्राण काम नहीं करता तो भाणा कुंठित हो जाती, समाप्त हो जाती। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003094
Book TitleKaise Soche
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size12 MB
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