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________________ २३४ कैसे सोचें ? ग्रस्त होती हैं और इसका कारण है कि उनमें पराक्रम की कमी होती है। वे बहुत शीघ्र भयभीत हो जाती हैं, इसलिए प्रेतात्माओं से जल्दी ग्रस्त होती हैं। यह अधिक मूल्यवान् और महत्त्वपूर्ण सूत्र है कि भूत भीत आदमी को ही पकड़ते हैं। अभीत आदमी कभी भूत-ग्रस्त नहीं होता। भय की तीसरी परिस्थिति है-आदान भय । इसका अर्थ है-संयोग और वियोग का भय । यह इतना बड़ा भय है कि इसका तनाव निरन्तर बना रहता है। प्राप्त वस्तु बिछुड़ न जाए, चली न जाए और अप्रिय वस्तु का संयोग न हो जाए-यह तनाव बना ही रहता है। अपना प्रिय व्यक्ति जब यात्रा पर प्रस्थान करता है तब यह विकल्प अनायास ही आ जाता है कि कहीं दुर्घटनाग्रस्त न हो जाए। संयोग और वियोग का चक्र निरन्तर घूमता रहता है। आदमी इष्ट का वियोग या अनिष्ट का संयोग कभी नहीं चाहता। आदमी कहीं भी जाए, वह अनेक भयों का भार लेकर जाता है। कुछ लोग शिविर में आते हैं, तो भयों को लादकर ले आते हैं। दो-चार दिन बाद कहते हैं-'शिविर में आने से पूर्व तो इतना भय था पर अब नहीं रहा। भय मिटा है।' जो भय के पात्र को भरा हुआ लेकर आए हैं तो उन्हें अभय की पूरी बात समझ में कैसे आ सकेगी। आदमी शरीर को बहुत आराम देना चाहता है। थोड़ा-सा कष्ट होता है, वह घबड़ा जाता है। क्या इतना आराम, इतनी असहिष्णुता और शरीर का इतना लालन-पालन हितकर हो सकता है ? यह बहुत बड़ा प्रश्न है। __ आयुर्वेद के आचार्य कहते हैं-इन्द्रियों को बहुत सताना भी नहीं चाहिए और उनका बहुत लालन-पालन भी नहीं करना चाहिए। जो माता-पिता बच्चे का बहुत उत्पीड़न करते हैं उनके बच्चे बिगड़ जाते हैं और यदि बच्चे का अधिक लालन-पालन करते हैं तो भी बच्चे बिगड़ जाते हैं। इन्द्रियां भी बच्चे की तरह हैं। इनमें सन्तुलन होना चाहिए। संतुलन होने पर इंद्रियां ठीक काम करती हैं। शरीर की अधिक सार-संभाल, साज-सज्जा, ज्यादा संवारना, सतत उसका चिंतन करना बहुत खतरनाक स्थिति पैदा कर देता है, शारीरिक दृष्टि से भी और मानसिक दृष्टि से भी। हमने देखा कि जो श्रम करना नहीं चाहते, ज्यादा आरामतलबी चाहते हैं वे चीनी की बीमारी से ग्रस्त हो जाते हैं। आयुर्वेद में इस रोग का नाम ही है 'सुखासिका' । हार्ट टूबल भी उन्हीं लोगों को अधिक होता है जो श्रम नहीं करते, आराम से पड़े रहते हैं। उनकी धमनियां मोटी पड़ जाती हैं, रक्त का संचार पूरा नहीं होता। पुराने लोग हृदय की बीमारी होने पर विश्राम की सलाह देते थे किन्तु आज के डॉक्टर यह सलाह देते हैं कि घूमो, फिरो, हल्का व्यायाम करो, जिससे कि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003094
Book TitleKaise Soche
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size12 MB
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