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भय के स्रोत
समूचा संसार गतिशील है। सब कुछ प्रकम्पन ही प्रकम्पन है, गति है गति है। गति का अर्थ है-स्थान-परिवर्तन । हम एक स्थान में होते हैं और जब गति होती है तब स्थान बदल जाता है। अचेतन और चेतन-दोनों जगत में गति का यह सिद्धांत चल रहा है।
___ हमारा चित्त भी गतिशील है। वह भी बदलता है। वह एक स्थान मे होता है, थोड़ा समय बाद दूसरे स्थान में चला जाता है। प्रेक्षाध्यान का अभ्यास इसलिए होता है कि चित्त एक स्थान पर स्थिर रह सके। चित्त बहुत गतिशील है। एक स्थान पर टिकता ही नहीं। प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक ग्लैण्ड' ने नेक परीक्षण किए और निष्कर्ष की भाषा में कहा कि ध्यान का स्थल एक मिनट में पन्द्रह बार बदल जाता है। तात्पर्य यह हुआ कि चार सेकण्ड में ध्यान का स्थल बदल जाता है। चार सेकण्ड के पश्चात् अवधान का स्थल बदल जाता है। मनोवैज्ञानिक विलिंग्ज' ने भी लगभग यही निष्कर्ष निकाला था कि १ से ५ सेकण्ड के मध्य ध्यान का स्थल बदल जाता है। ध्यान करने वाला प्रत्येक साधक यह अनुभव करता है कि एक विषय पर चित्त लम्बे समय तक एकाग्र नहीं होता। किसी विषय को लेकर बैठते हैं और वह ध्यान बदल जाता है, स्थान बदल लेता है। विषय परिवर्तन या स्थूल परिवर्तन स्वाभाविक प्रक्रिया है। विचार बदलता है, विषय बदलता है, अवधान बदलता है, सब कुछ बदलता रहता है। हमारा जीवन बहुत बड़ा चलचित्र है। जितने चलचित्र हमने देखे हैं, वे सब इसके सामने छोटे पड़ते हैं। दूसरे चलचित्र ढाई-तीन घंटे के होते हैं, किन्तु जीवन का यह चलचित्र जीवन भर रहता है, क्षण-क्षण परिवर्तन होता रहता है। दृश्य का परिवर्तन होता रहता है। दृश्य का कभी अन्त नहीं आता।
दो व्यक्ति बातें कर रहे थे। दोनों गप्पी थे। एक ने कहा-मेरा दादा इतना बड़ा तैराक था कि वह अपने गांव के तालाब पर तैरने गया और तीन दिन तक, रात-दिन तैरता रहा। कितना कुशल तैराक ! दूसरा बोला-बस, इतनी-सी बात है ! मेरे दादा की बात सुनो। वह समुद्र में तैरने के लिए गया। उसको गए पचास वर्ष हो गए। आज तक वह घर नहीं आया। लगता है पचास वर्षों से निरन्तर समुद्र में तैर रहा है। कितना निपुण तैराक है !
___ हमारे जीवन का यह चलचित्र भी निरन्तर हवा में तैरता रहता है। कभी पूरा होता ही नहीं।
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