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________________ अभयदान २१३ अतिरिक्त स्राव हुआ और उस व्यक्ति की शक्ति बढ़ गई। इतनी बढ़ी कि वह दस व्यक्तियों के वश में भी नहीं रहा। जब व्यक्ति हिस्टीरिया की बीमारी से ग्रस्त होता है और जब उसे दौरा पड़ता है तब अत्यधिक शक्ति आ जाती है और उसे देखकर लोग मान बैठते हैं कि यह सारा कार्य किसी अदृश्य छाया का है। कोई भूत प्रेत शरीर में आविष्ट हुआ है, अन्यथा इतनी शक्ति नहीं होती। यथार्थ में न कोई छाया पड़ी है और न कोई भूत लगता है। यह सारा चमत्कार एड्रीनल के स्राव का है। एड्रीनल बहुत बड़ी छाया है, बहुत बड़ा प्रेत है। जब तक एड्रीनल नियन्त्रण में रहता है तब ठीक-ठीक काम देता है और भूत का काम करता है। प्रारम्भ में उस अतिरिक्त स्राव से जितनी शक्ति का अनुभव होता है, बाद में उतनी ही अधिक शिथिलता आती है। एड्रीनल सक्रिय होता है तब तक शक्ति का अनुभव होता है और जब वह निष्क्रिय होता है तब व्यक्ति निढाल हो जाता है, सुस्त हो जाता है। भय उत्पन्न होने के चार मुख्य कारण हैं१. प्राकृतिक नियमों को न जानने के कारण। २. शरीर के नियमों को न जानने के कारण। ३. मन के नियमों को न जानने के कारण। ४. चेतना के नियमों को न जानने के कारण। जिस व्यक्ति ने प्रकृति के, शरीर के, मन के और चेतना के नियमों को जानने का प्रयत्न किया है, वह भय से मुक्त हुआ है। जो व्यक्ति इन जागतिक नियमों को नहीं जान पाता, वह हर बात से डर जाता है। बच्चा जितना डरता है, बड़ा नहीं डरता और वह इसलिए नहीं डरता कि वह अनेक नियमों को जानता है। उसका भय कम हो जाता है। ध्यान का प्रयोग इन नियमों को जानने का अच्छा माध्यम है। प्रेक्षाध्यान से हम शरीर के, मन के और चेतना के नियमों को जान लेते हैं यह नियमों को जानने की प्रक्रिया है। आज के वैज्ञानिकों को मैं बहुत महत्त्व देता हूं, क्योंकि उनकी खोजों के द्वारा शरीर और मन के जटिल नियमों की व्याख्या हुई है। प्राचीन ग्रंथों में इतनी विशद व्याख्या प्राप्त नहीं है। शरीर के एक-एक कण के विषय में जितनी स्पष्ट अवधारणा आज हमें प्राप्त है, वैसी पहले कभी नहीं हुई थी। जिसकी जो विशेषता है उसे हमें सहर्ष स्वीकार करना चाहिए। मैं भौतिकवाद और अध्यात्मवाद को भिन्न कोण से देखता हूं। उनको परम्परागत दृष्टि से देखना न्यायसंगत नहीं होगा। प्रश्न पूछा जाता है कि आत्मा को मानते हैं या नहीं मानते ? ईश्वर को मानते हैं या नहीं मानते ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003094
Book TitleKaise Soche
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size12 MB
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