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कैसे सोचें ?
प्रेक्षाध्यान का शिविर प्रशिक्षण का शिविर है। इसमें अध्यात्म का प्रशिक्षण होता है। प्रशिक्षण के तीन घटक तत्त्व हैं
१. आस्था का निर्माण। २. उपाय-बोध। ३. अभ्यास।
आदमी जो काम करता है या करना चाहता है यदि उस कार्य के प्रति आस्था नहीं बनी है तो वह अपने कार्य में कभी सफल नहीं हो सकता। सफलता की पहली शर्त है आस्था का निर्माण। जिस कार्य के प्रति आस्था निर्मित हो जाती है, उस कार्य में हम सफल हो जाते हैं। जिस कार्य के प्रति आस्था का निर्माण नहीं होता, उसमें हम विफल हो जाते हैं। विफलता का पहला चिह्न है आस्था का न होना।
__ प्रशिक्षण का दूसरा सूत्र है-उपाय-बोध । सफलता के लिए यह भी अनिवार्य तत्त्व है। आस्था है पर उपाय नहीं है, मार्ग उपलब्ध नहीं है, ज्ञान नहीं है, युक्ति का अवबोध नहीं है तो कार्य निष्पन्न नहीं होगा। अनेक लोग ऐसे होते हैं जो यह अनुभव ही नहीं करते कि वे क्या कर रहे हैं ? उन्हें क्या होना है ? वे अपनी उलझनों में ही उलझे रहते हैं।
एक आदमी बस में खड़े-खड़े सफर कर रहा था। पास में बैठे लोगों ने कहा-'अरे, बैठ जाओ। अभी गांव दूर है।' वह बोला-कैसे बैठ जाऊं ? तुम्हें पता नहीं है, मुझे जल्दी पहुंचना है। मेरे पास बैठने का समय ही नहीं
आदमी अपनी ही उलझनों में और अज्ञान में उलझा रहता है। उसमें ऐसा दृष्टिमोह और दृष्टिभ्रम पैदा हो जाता है कि वह सच्चाई को पकड़ ही नहीं पाता।
उपाय-बोध के बिना प्रशिक्षण का क्रम सफल नहीं हो सकता। हमें उपाय चाहिए।
मगध के सम्राट् श्रेणिक के पास सेचनक नामक गंधहस्ती था। उसकी गंध मात्र से दूसरे सारे हाथी निवीर्य हो जाते थे। एक बार वह हाथी नदी पार कर रहा था। एक मगरमच्छ ने उसे पकड़ लिया। हाथी बहुत शक्तिवान् । पर वह फंस गया। हमारी इस दुनिया में कोई एक प्राणी ही शक्तिशाली नहीं होता। चारों ओर शक्तिशाली प्राणी भरे पड़े हैं। जिसका जहां अवकाश हो जाए, वहां वह शक्तिशाली बनकर बैठ जाता है। नदी में मगरमच्छ बहुत शक्तिशाली होता है।
राजा को ज्ञात हुआ। अनेक उपाय किये पर मगरमच्छ ने हाथी को
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