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________________ ११६ कैसे सोचें ? ने राजा को देखा, वह बोल पड़ा- 'राही जा रहा है। जल्दी आओ, लूटो-लूटो | जा रहा है, जा रहा है।' राजा ने तोते को बोलते देखा । उसकी बात सुनी। अचम्भे में पड़ गया। गति को तेज कर आगे निकल गया । अकेला था, भय भी लगा। आगे चला गया । बहुत दूर जाने पर उसे एक दूसरा आश्रम मिला । आश्रम में अनेक कुटीर थे । एक कुटीर के द्वार पर पिंजरा था और उसमें भी एक तोता था । तोते ने जैसे ही राजा को देखा, बोल उठा - स्वागतम्, स्वागतम्, सुस्वागतम् । आओ, बैठो, स्वागत स्वीकार करो।' राजा ने सुना । अचंभा शतगुणित हो गया। राजा पिंजरे के पास जाकर तोते से बोला- 'भाई! तुम आदमी की भाषा बोलते हो। मुझे एक रहस्य समझाओ । कुछ समय पहले मैं एक बस्ती से गुजर रहा था। वहां एक पिंजरे में तोता था । उसने मुझे देखते ही कहा, आओ, लूटो, लूटो, पथिक जा रहा है। यहां आने पर तुमने कहा- स्वागतम्, स्वागतम्, सुस्वागतम्। इतना अन्तर क्यों ? तुम दोनों एक ही जाति के पक्षी हो। दोनों मनुष्य की भाषा में बोलते हो, फिर दोनों की वाणी में यह भेद क्यों ?" तोता बोला- 'महाराज ! क्षमा करें। हम दोनों एक जाति के ही नहीं, एक ही वंश के हैं, हम दोनों सगे भाई हैं। दोनों के माता-पिता एक हैं। मैं बड़ा हूं, वह छोटा है, पर है मेरा सगा भाई । ' राजा का आश्चर्य शतगुणित हो गया । उसने पूछा, फिर दोनों की भाषा में, भावना में इतना अन्तर क्यों ? वह बोला- राजन् ! भावना के अन्तर का रहस्य यह है'मलिम्लुचानां स वचः श्रृणोति, अहं तु राजन् ! मुनिपुंगवानाम् । प्रत्यक्षमेतत् प्रतिभाति सत्यं, संसर्गजा दोषगुणा भवन्ति । । ' राजन् ! मेरा वह छोटा भाई तोता मांसाहारी चोरों और डकैतों के संपर्क में रहता है, उनके वातावरण में पलता है इसलिए वह लूटखसोट की बातें सीखता है, करता है । मैं सदा ऋषि-मुनियों के संसर्ग में रहता हूं, इस लिए अच्छाइयां सीखता हूं । आपने यह प्रत्यक्ष देख ही लिया कि 'संसर्गजा दोषगुणा भवन्ति' - गुण और दोष संसर्ग के कारण आते हैं। जैसा संसर्ग वैसी ही फल प्राप्ति । बुरे संसर्ग से दोष पनपते हैं और भले संसर्ग से गुणों में वृद्धि होती है। गुण और दोष- ये दोनों संसर्ग के कारण आते हैं, वातावरण के कारण आते हैं। वातावरण के प्रभाव से आदमी बुरा होता है। एक ऐसा स्वच्छ और पवित्र वातावरण होता है कि उसमें पलने वाला बच्चा अच्छा हो जाता है और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003094
Book TitleKaise Soche
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size12 MB
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