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________________ १०६ कैसे सोचें ? इस प्रकार के विरोधी विचार आदमी के मन में पैदा होते रहते हैं। एक मन कहता है कि यह काम करूं और दूसरा मन कहता कि वह काम करूं। एक मन कहता है यह करूं, तो दूसरा मन कहता है यह न करूं। कितने मन हैं। शायद हर आदमी के मन में ऐसा प्रश्न उठता होगा और हर व्यक्ति यह सोचता होगा कि कितने मन हैं पता नहीं लगता। अनेक मन हैं आदमी के। अहिंसा के मार्ग में चलने वाले व्यक्ति के मन में कभी-कभी विचार आ जाता है हिंसा करने का और हिंसा न करने का । ब्रह्मचर्य के मार्ग पर चलने वाला अब्रह्मचर्य की बात सोच लेता है और अब्रह्मचर्य पर चलने वाला ब्रह्मचर्य की बात सोच लेता है। कितने विरोधी भाव हमारे मन में पैदा होते रहते हैं ? सहज ही प्रश्न होता है, आदमी के मन कितने हैं ? ___ भगवान् महावीर ने कहा-'अणेगचित्ते खलु अयं पुरिसे'-यह पुरुष अनेक चित्तों वाला है। मन तो एक ही है। मन बेचारा क्या अनेक होगा ? वह तो हमारा वाहन है, यंत्र है, काम करने का एक साधन है। वह अनेक कैसे होगा ? हमारे चित्त अनेक होते हैं। हमारे चित्त की वृत्तियां अनेक होती हैं। चित्त में नाना प्रकार की वृत्तियां जागती हैं, नाना प्रकार के चित्त जागते हैं और मन अनेक बन जाते हैं। मन अपने आप में एक होता है। चित्त की वृत्तियों के कारण और चित्तों के कारण मन भी अनेक जैसा प्रतिभाषित होने लग जाता है। अनेक हैं हमारे चित्त । फ्रायड ने ठीक कहा था कि मनुष्य का मन एक हिमखंड जैसा होता है। हिमखंड का बहुत सारा भाग समुद्र में छिपा होता है। केवल थोड़ा-सा ऊपर का सिरा दिखाई देता है। जितना दिखाई देता है हिमखंड, उतना ही नहीं है। बहुत बड़ा है। दिखने वाला छोटा और न देखने वाला बहुत बड़ा। ज्ञात छोटा और अज्ञात बड़ा। जुंग ने मन की तुलना एक महासागर से की है। मन एक महासागर है। उसमें ज्ञात मन केवल एक द्वीप जैसा है। अज्ञात मन महासागर जैसा और ज्ञात मन महासागर में होने वाले द्वीप जैसा, एक छोटे टापू जैसा है। हम लोग अपने सारे व्यवहारों की, आचरणों की व्याख्या ज्ञात मन के माध्यम से करना चाहते हैं। यह कभी संभव नहीं होगा। केवल ज्ञात मन के द्वारा जो व्याख्या की जाएगी वह अधूरी होगी, मिथ्या होगी। जब ज्ञात और अज्ञात-दोनों मनों की समष्टि करेंगे तो सम्पूर्ण व्याख्या होगी। अज्ञात मन के लिए फ्रायड ने डिफ्त साइकोलोजी की व्याख्या की। डफ्त साइकोलोजी' में केवल ज्ञात मन की व्याख्या नहीं होती, अज्ञात मन की व्याख्या होती है। प्रत्येक व्यवहार के लिए अज्ञात मन की व्याख्या होती है कि मनुष्य का व्यवहार अज्ञात से हो रहा है, ज्ञात मन के द्वारा यह ऐसा व्यवहार नहीं हो रहा है। आज के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003094
Book TitleKaise Soche
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size12 MB
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