________________
ऋषभ और महावीर
जुड़ जाना नींद का एक विकल्प है। इस विकल्प से नींद को जीता जा सकता है। नींद और महावीर
भगवान् महावीर शरीर का श्रम भी करते थे। बहुत सारे साधक आश्रम बनाकर बैठ जाते हैं, बिल्कुल निवृत्त होकर बैठ जाते हैं। महावीर की सारी साधना इसके विपरीत थी। महावीर एक स्थान पर कहीं नहीं टिके। वे बीहड़ जगलों में गए, श्मशान और शून्यागारों में घूमे, अनार्य-देशों में परिव्रजन करते रहे । उनके शरीर का श्रम बहुत रहा किन्तु मन का श्रम बिल्कुल नहीं रहा।
नींद आने के दो मुख्य कारण हैं—शरीर का श्रम और मन का श्रम । शायद शरीर से भी अधिक मन का श्रम नींद का कारण बनता है। महावीर के मानसिक श्रम का कोई कार्य नहीं था। उन्होंने न पढ़ाई की और न किसी को गुरु बनाया। न कुछ सोचना और न कुछ चिंतन करना । मानसिक तनाव को पनपने का कोई अवकाश ही नहीं था। यदि शरीर और मन के श्रम के साथ नींद का सम्बन्ध पचास प्रतिशत जोड़ें तो पचास प्रतिशत नींद स्वत: विजित हो गई। उनके मन का कोई श्रम नहीं था इसलिए मन के श्रम से जो नींद आती थी, वह समाप्त हो गई। विलक्षण बात
शरीर के श्रम का संदर्भ लें। महावीर ने शरीर श्रम को भी अश्रम में बदल दिया। उन्होंने कायोत्सर्ग द्वारा शरीर का शिथिलीकरण कर दिया, तीस प्रतिशत नींद
और विजित हो गई। शेष रही बीस प्रतिशत नींद । भगवान् महावीर ने बारह वर्षों में एक दिन भी सुख से रोटी नहीं खाई। इसका अर्थ है—जो रोज आराम से खूब खाता है, उसे नींद अधिक सताती है। साधनाकाल में महावीर अकेले थे। न साधु-साध्वियां थीं, न श्रावक थे और न श्राविकाएं थीं। पूरा खाना ही नहीं खाया तो नींद कैसे आती? इससे दस प्रतिशत नींद पर नियंत्रण हो गया। सौ प्रतिशत में से केवल दस प्रतिशत शेष रहा। हम जानते हैं जिसकी नब्बे प्रतिशत शक्ति चली जाती है, केवल दस प्रतिशत शक्ति शेष रहती है उसकी क्या स्थिति होती है? नींद की शक्ति क्षीण हो गयी। नींद को स्थान वे देते हैं जो भर-पेट भोजन करते हैं, शरीर और मन का श्रम करते हैं। महावीर अलबेले योगी थे। नींद के लिए उनके पास कोई स्थान नहीं था। निद्रा के सम्भावित कारणों के अध्ययन के आधार पर कहा जा सकता है भगवान् ने निद्रा के कारणों को ही मिटा डाला।
भगवान् महावीर बारह वर्ष में एक मुहूर्त से अधिक नहीं सोए, यह सुनकर
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org