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भरत और बाहुबली
दूत भरत का संदेश लेकर तक्षशिला की राजधानी बहली प्रदेश में पहुंचा। वह बाहुबली के सामने प्रस्तुत हुआ। उसने अपना परिचय देते हुए कहा—मैं अयोध्या से आया हूं । चक्रवर्ती भरत ने मुझे भेजा है । मैं आपकी सेवा में उनका संदेश लेकर आया हूं। ___ बाहुबली ने दूत से पूछा-बताओ ! मेरे भाई भरत कैसे हैं ? सुखी तो हैं ? . कोई कठिनाई तो नहीं है? क्यों भेजा है तुम्हें/ किसी शत्रु ने आक्रमण तो नहीं कर दिया? अगर मुसीबत में हैं तो मैं अभी चलने को तैयार हूं। संबंध : दूसरा चित्र
यह सुन दूत मन-ही-मन हंस रहा था। उसने कहा-महाराज ! वहां क्या मुसीबत हो सकती है ? भरत सबको जीतने वाले चक्रवर्ती सम्राट हैं। भरत का जो राज्याभिषेक उत्सव मनाया गया, उसमें सारे राजा उपस्थित हुए पर आप नहीं आए।
बाहुबली बोले-मुझे बुलाना चाहते हैं?
दूत बोला-भरत चक्रवर्ती हैं। उनके पास आपको जाना चाहिए। वे आपके बड़े भाई हैं। उनका शासन आपको स्वीकार करना चाहिए। .
दूत के इस कथन से वातावरण बदल गया। भरत का यह संदेश–बाहुबली आए और मेरे शासन को स्वीकार करे-सुनते ही बाहुबली के चेहरे का रंग बदल गया। बाहुबली अहंकार और गुस्से से भर उठे। उन्होंने कहा—बाहुबली किसका शासन स्वीकार करे? शासन एक ऋषभ का हो सकता है और किसी का शासन नहीं हो सकता। भरत मेरा बड़ा भाई है । मैं उसका छोटा भाई हूं। इससे आगे और कोई बात नहीं है। हमारे बीच भाई-भाई का संबंध है। शास्ता और शासित का संबंध कभी संभव नहीं है। पहला संबंध भावों से है ___ बहुत लम्बा संवाद चला। दूत ने कुछ बातें बढ़ा-चढ़ा कर प्रस्तुत की। उससे बाहुबली के अहंकार को चोट पहुंची। अहंकार का नाग फुफकार उठा। बाहुबली ने भरत की आज्ञा को अस्वीकार करते हुए कहा-जाओ ! भरत से कह दो । बाहुबली तुम्हारा शासन स्वीकार नहीं करेगा। या तो मौन होकर बैठ जाओ अन्यथा युद्ध भूमि में हमारा मिलन होगा। युद्ध का निमंत्रण दे दिया। बाहुबली अपनी सेना के साथ युद्ध के लिए चल पड़ा। दोनों भाई युद्ध-भूमि में आमने-सामने हो गए। युद्ध का शंखनाद बज उठा।
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