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________________ ऋषभ और महावीर मौन क्यों हुए? बोलो ! चक्र न जाने का कारण क्या है? महाराज ! मैं क्या बोलूं? उसने सोचा–बोलूं तो मुसीबत और न बोलूं तो मुसीबत । मनुष्य कभी-कभी ऐसी दोहरी समस्या में फंस जाता है। तुम्हें कारण बताना होगा। महाराज ! मैं जो कहूंगा, वह आपको प्रिय नहीं लगेगा, इसलिए अच्छा यही है कि मैं मौन रहूं। नहीं ! तुम जो कहना चाहते हो, कहो। सुषेण फिर भी मौन रहा। उसने सोचा-मैं दो भाइयों के बीच क्यों फसूं। इनका क्या होगा। इनकी लड़ाई में बेचारे सैनिक संत्रस्त होंगे। मौन रहना ही अच्छा चक्रवर्ती भरत ने बहत आग्रह किया। अंतत: सुषेण को कहना पड़ा-महाराज! आपने सबको जीत लिया पर आपका भाई बाहुबली अभी तक अविजित है, अपराजित है। उसे कोई जीत नहीं सकता। वे आपका शासन मानने को तैयार नहीं हैं और चक्र आयुधशाला में प्रवेश करने को तैयार नहीं है । यही समस्या है और यही कारण है। यह सुनकर चक्रवर्ती का माथा ठनका। संबंध : एक चित्र भरत और बाहुबली में परस्पर अगाध प्रेम था। उनके प्रेम की कोई.सीमा नहीं थी। दोनों बचपन से साथ रहे, साथ खेले, अनेक क्रीड़ाएं कीं । बाहुबली ने भरत के साथ अपने संबंधों का बहुत सुन्दर चित्रण किया है-एक दिन वह था, जब मैं एक क्षण भी भाई के बिना नहीं रहता था। आज पिता ने मुझे स्वतंत्र बना दिया। अब कहां भाई रहा और कहां मैं रहा। फिर भी एक दिन भी ऐसा नहीं जाता, जिस दिन भाई की स्मृति न हो। . जब अधिकार का भाव प्रबल होता है, अहंकार का भाव प्रबल होता है, तब संबंध धरे रह जाते हैं, गौण बन जाते हैं। अपने भावों के सामने दूसरा व्यक्तित्व टिकता ही नहीं है। अधिकार का भाव प्रबल बना, संबंध की चेतना सो गई। भरत ने बाहुबली को अपने अधीन बनाने का निश्चय कर लिया। उसने दूत को बुलाकर निर्देश दिया—तुम तक्षशिला जाओ और बाहुबली को मेरा संदेश दो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003093
Book TitleRushabh aur Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages122
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size5 MB
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