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ऋषभ और महावीर
भाई भगवान के चरणों के अधीन बन गए, मुनि बन गए। भगवान की अधीनता मिल जाए इससे बड़ी स्वतंत्रता क्या होगी? भगवान की अधीनता का मतलब ही है स्वतंत्रता। कहीं कहीं ऐसी स्थिति में स्वतंत्रता का मतलब अधीनता या परतंत्रता बन जाता है। वे सब स्वतंत्र बन गए, समस्या से मुक्ति पा गए।
यह स्वतंत्रता और परतंत्रता का प्रश्न आज का प्रश्न नहीं है । यह सनातन प्रश्न है किन्तु इसका समाधान वही व्यक्ति कर सकता है जिसने कोई अतिरिक्तता अर्जित की है, विशेषता प्राप्त की है। दूसरों को पराधीन बनाने का संकल्प नहीं किन्तु दूसरों के मन में उसके अधीन बनने का संकल्प जाग जाए, यह एक सुन्दर समाधान है
और वह समाधान ऋषभ के पुत्रों को मिला। समाज के आदिमकाल में इस प्रश्न का सुन्दर समाधान खोजा गया। आज के समाज के अग्रणी व्यक्ति, समाजशास्त्री, राजनीतिज्ञ या अध्यात्मविद् इस सूत्र को पकड़ सके और विशेषता के द्वारा अधीन बनाने की बात कर सके तो शायद सारी दुनिया में जो भयंकर संघर्ष की स्थिति चल रही है, आग की ज्वालाएं फूल रही हैं, उनमें एक जलसिंचन होगा, आग को बुझाने का मौका मिलेगा।
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