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ऋषभ और महावीर
जनता के सामने प्रस्तुत की। कोई नहीं चाहता था - ऋषभ हमें छोड़कर जाएं । भरत नहीं चाहता था, विनीता नगरी का कोई भी नागरिक नहीं चाहता था — ऋषभ का साया, उनकी सुखद छत्रछाया छूट जाए। भरत ने भगवान् ऋषभ से अनुरोध किया— आप हमें इस प्रकार असहाय बनाकर प्रस्थान न करें। जनता ने भी यही निवेदन किया । ऋषभ ने उनकी भावना को स्वीकार नहीं किया। उनका निश्चय दृढ़ था । ...और एक दिन आया - ऋषभ ने भरत, बाहुबली आदि को अपना राज्य सौंप दिया । वे राज्य को छोड़ जंगल की ओर चल पड़े। शहर से प्रस्थान कर ऋषभ विनीता, ग्राम के बाहर उद्यान में पहुंचे। उनके साथ न जाने कितनी भीड़ थी ! सारी विनीता नगरी उमड़ पड़ी। चार हजार व्यक्ति उनके साथ रहने के लिए चल पड़े । वे पूछ रहे थे - ऋषभ क्यों जा रहे हैं ? कहां जा रहे हैं ? वे नहीं जानते थे - साधु क्या होता है ? उन्होंने न साधु को देखा था और न ही साधु का नाम सुना था वे कुछ भी नहीं जानते थे, किन्तु कच्छ और महाकच्छ के नेतृत्व में वे ऋषभ के साथ चलने लिए कटिबद्ध थे ।
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नया प्रस्थान
भरत ने कहा—कच्छ ! महाकच्छ ! आप कहां जा रहे हैं ?
कच्छ और महाकच्छ ने कहा- हम भगवान् ऋषभ के साथ जा रहे हैं। आप वहां क्या करेंगे? आप मत जाइए ।
कुछ भी हो, जहां ऋषभ जाएंगे, वहां कच्छ भी जाएगा, महाकच्छ भी जाएगा, हम सब जाएंगे।
चार हजार की फौज ऋषभ के पीछे चल पड़ी। इस दृश्य को देखने से विनीता का कोई नागरिक वंचित नहीं रहा । यह एक नया प्रस्थान था । संभव है— ऋषभ ने वेश भी बदला होगा ? उस समय के चित्र को खींचना बड़ा कठिन है । इस चित्र को कैसे खींचा जाए ? उस समय भगवान् ने अपना वेश क्या रखा ? कैसा वेश रखा ? कपड़े रखे तो कितने रखे ? किस रंग का कपड़ा पहना ? पहली बार क्या किया ? यदि ऐसा कोई साधन विकसित हो, जो करोड़ों-करोड़ों वर्ष पूर्व के दृश्यों का फोटो ले सके, उनकी रील दिखा सके तो हमें कुछ पता चल सकता है। अन्यथा उसकी कल्पना ही की जा सकती है ।
आत्म और समता
ऋषभ विनीता नगरी के उद्यान में खड़े हो गये। उनके साथ चार हजार की
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