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ऋषभ और महावीर
आंख का काम भी देखना है। देखना दो भागों में विभक्त हो गया-भीतर की आंख से देखना और बाहर की आंख से देखना। भीतर की आंख से देखना बिजली का प्रकाश है । बाहर की आंख से देखना मोमबत्ती या दीपक का प्रकाश है । जब बिजली नहीं होती तब मोमबत्ती, दीपक या लालटेन का उपयोग भी करना पड़ता है। आवश्यकता है-हर व्यक्ति के बाहर की आंख भी जागृत रहे और भीतर की आंख भी जागे। अतीन्द्रिय चेतना का प्रश्न ___ दर्शनशास्त्र बहुत प्रचलित रहा है । दर्शन विद्या की एक पूरी शाखा बन गया। प्राय: प्रत्येक विश्वविद्यालय में दर्शन की एक शाखा मिलेगी। दर्शन का अर्थ है देखना । दर्शन पढ़ने वाला विद्यार्थी कभी आंख से नहीं देखता। ऐसे भी लोग हुए हैं, जिनके पास आंख नहीं थी किन्त वे दर्शन के जाने-माने विद्वान् थे। प्रेक्षा भीतर की आंख है। भीतर की आंख से देखना प्रेक्षा है। जो व्यक्ति भीतर की आंख से देखने का प्रयत्न करता है, वह बहुत कुछ देख लेता है। जो केवल बाहरी आंखों से काम लेता है, वह बहुत सीमित हो जाता है । अपेक्षा है— हमारी अतीन्द्रिय चेतना जागे । वही नहीं जागती है तो देखना अधूरा रह जाता है। यह एक सच्चाई है। हम इसे उलटकर देखें। क्या कोई ऐसा प्राणी है, जिसके पास अतीन्द्रिय चेतना नहीं है? मनुष्य ही नहीं, पशु-पक्षियों में भी अतीन्द्रिय चेतना रहती है। उनमें मनुष्य से ज्यादा अतीन्द्रिय चेतना रहती है। प्रश्न हुआ-पशु-पक्षियों में अतीन्द्रिय चेतना अधिक क्यों होती है ? इस प्रश्न पर आज के विचारकों और विद्वानों ने चिन्तन के पश्चात् कहा—मनुष्य ने इन्द्रिय चेतना से काम लेना शुरू किया और अतीन्द्रिय चेतना को भुला दिया। पशु-पक्षी आज भी अतीन्द्रिय चेतना से काम लेते हैं। उन्हें दूर-दूर की बात का पता चलता है। भयंकर तूप. न, भूकंप आने वाला है, मनुष्य को पता नहीं चलता किन्तु पशु-पक्षियों को पता चल जाता है । उनकी अतीन्द्रिय चेतना आज भी काम कर रही है। वे तरंगों के सहारे दूर की स्थिति को जान लेते हैं। मनुष्य समाज इंद्रिय चेतना में इतना डूब गया है, इंद्रियों पर इतना भरोसा करने लग गया है कि वह इनसे दूर जाना ही नहीं चाहता। प्रेक्षा और इन्द्रिय संयम
जो व्यक्ति प्रेक्षा का प्रयोग शुरू करता है उसे सबसे पहले इन्द्रिय-संयम करना होता है। इन्द्रिय-संयम का अर्थ है-प्रति-संलीनता। इसका तात्पर्य है-कान से
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