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ऋषभ और महावीर
हूं। क्या आप इन्हें लेंगे? महावीर के पास पात्र नहीं था। उन्होंने अपने हाथ आगे बढ़ा दिए । दासी ने चावल का दान दे दिया । महावीर ने बासी चावल खाकर अपनी तपस्या का पारणा किया। महावीर बहुत कम खाते थे। उन्होंने अपने साधनाकाल में कभी रोजाना भोजन नहीं किया। लम्बी तपस्या का पारणा भी रूखे-सूखे भोजन से होता। यह अन्वेषण का विषय है—महावीर ने अपने साधनाकाल में कितने दिन भोजन किया। साढ़े बारह वर्ष में उन्होंने एक वर्ष भी खाना नहीं खाया। महावीर ने संकल्प किया-मैं साधनाकाल में कोई चिकित्सा नहीं कराऊंगा। साधनाकाल में चिकित्सा कराने का कोई प्रसंग ही नहीं बना । महावीर साधनाकाल में बीमार बने ही नहीं। संकल्प : शक्ति का नियोजन - इस संदर्भ में एक बात पर ध्यान केन्द्रित करना जरूरी है। उपवास करना एक बात है, संकल्प के साथ उपवास करना दूसरी बात है। इस विषय पर ध्यान केन्द्रित होना चाहिए। हम ध्यान करें, उपवास करें या कायोत्सर्ग करें, उसके साथ एक संकल्प जुड़ा होना चाहिए। हम जिस संकल्प के साथ जो करेंगे, हमारी सारी ऊर्जा उसी संकल्प के साथ जुड़ेगी। अगर संकल्प नहीं किया, उपवास या कायोत्सर्ग कर लिया, उससे जो शक्ति बढ़ेगी, ऊर्जा बढ़ेगी, उसका प्रयोग दसरी दिशा में भी हो सकता है। बिना संकल्प ऊर्जा का प्रवाह दूसरी दिशा में बह जाता है। किसी व्यक्ति ने कहा-आप यहां बैठे-बैठे क्या कर रहे हैं? यह सुनकर व्यक्ति गुस्से से भर गया। उसकी ऊर्जा का नियोजन गलत दिशा में हो गया। कहते हैं—तपस्वी को क्रोध ज्यादा आता है। तपस्वी के आग बढ़ती है, ऊर्जा बढ़ती है । तपस्वियों ने बड़े-बड़े अभिशाप दिए हैं क्योंकि उन्होंने अपना कोई संकल्प नहीं बनाया। महावीर ने सबसे पहले संकल्प का चुनाव किया। उनके सामने यह संकल्प बराबर बना रहासबं में पावकम्मं अकरणिज्जं । उन्होंने अपनी सारी ऊर्जा इसी में लगा दी । महावीर ने जो तप तपा, वह संकल्प की भूमि पर तपा। उनके क्रोध और अहंकार शांत हो गए, उनकी सारी ऊर्जा शांति की दिशा में प्रवाहित हो गई। महावीर समता, अहिंसा, मैत्री और प्रेम के प्रतिमान बन गए। अपेक्षा है—प्रत्येक व्यक्ति अपनी संकल्पशक्ति को जगाए, महावीर का अनुयायी ही नहीं, महावीर बनने का प्रयत्न करे । यदि ऐसा होता है तो महावीर की संकल्प शक्ति हमारे जीवन की उदात्त प्रेरणा बन पाएगी।
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