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________________ १०२ ऋषभ और महावीर घटनाएं हैं पर ऐसा कैसे हो सकता है ? इसका रहस्य क्या है? महावीर के जीवन के संदर्भ में इसकी मीमांसा करना आवश्यक है। कष्ट कब होता है? भगवान् महावीर ने काया का व्युत्सर्ग कर दिया, शिथिलीकरण कर दिया। कष्ट तब होता है जब आदमी शरीर में रहता है। जब आदमी शरीर को छोड़कर आत्मा में चला जाता है तब सारा कष्ट समाप्त हो जाता है । यह आत्मा में चले जाने की चाबी जिसको मिल जाती है, जो शरीर को छोड़कर आत्मा में प्रवेश करने की विधि सीख लेता है, उसके सारे कष्ट समाप्त हो जाते हैं। भगवान् महावीर के लिए एक महत्त्वपूर्ण शब्द का प्रयोग हुआ है—पणयासी । वे अपनी आत्मा के प्रति प्रणतसमर्पित हो गए। आत्मा ही उनका गुरु और आत्मा ही उनका परमात्मा था। उनके लिए आत्मा ही सब कुछ था । महावीर के लिए आत्मा के सिवाय और कुछ नहीं था। उनके सामने केवल आत्मा थी। ऐसी स्थिति में शरीर सताने की स्थिति में ही नहीं रहा । हमें लगता है—महावीर को इतने कष्ट हुए पर उन्हें उनका आभास भी नहीं हआ। यदि उन्हें कष्ट का आभास होता तो वे जीवित ही नहीं रह पाते । वे उस अमरत्व के पास पहुंच गए थे, जहां मृत्यु जैसी कोई चीज रही ही नहीं। अन्यथा उन कष्टों में अविचल रहना सहज नहीं था। जो व्यक्ति आत्मा के भीतर चला जाता है, उसे कोई विचलित नहीं कर पाता। आत्मा की सन्निधि दक्षिण भारत की घटना है। एक साधु खड़े-खड़े ध्यान कर रहे थे। वहीं चरवाहे पशुओं को चरा रहे थे। उन्होंने देखा—एक काला सांप साधु की ओर बढ़ रहा है । चरवाहों ने मुनि को विषधर से बचने के लिए आग्रह किया। साधु ध्यान में तल्लीन बने हए थे। सांप साध के पास आया उनके पैरों में काटने लगा। वह काटते-काटते थक गया, अपने स्थान पर चला गया। साधु वैसे ही अडिग और अडोल खड़े रहे । चरवाहे देखते रहे । उन्होंने सोचा-जहर चढ़ रहा है । साधु अब गिर जाएंगे। आश्चर्य था-साधु वैसे ही खड़े थे। ध्यान पूरा हुआ। लोगों ने कहा-महाराज ! सांप आया था। सन्त बोले-आया होगा। सांप ने आपको काटा था। काटा होगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003093
Book TitleRushabh aur Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages122
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size5 MB
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