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वर्धमान : परीषहों के घेरे में
ऐसी मानसिक क्रिया का प्रयोग किया जाए, उससे ऐसा रसायन पैदा किया जाए, जो कष्ट देने वाले रसायनों को बीच में ही रोक दें। सफलता का सूत्र : आस्था
पीड़ा अनुसंधान केन्द्र के एक अध्यक्ष ने लिखा-यदि हम रोगी का विश्वास, तनाव मुक्ति, उत्साह और आनन्द की भावना से भर सकें तो उसकी पीड़ा की अनुभूति से साठ-सत्तर प्रतिशत तके का अन्तर आ सकता है। दो रोगियों में समान पीड़ा है। ऐसी स्थिति बन सकती है--एक व्यक्ति तीस प्रतिशत बीमारी भोगेगा और दूसरा व्यक्ति सौ प्रतिशत । आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में कहा गया है-रोगी को सहानुभूति चाहिए। उसे विश्वास दिलाया जाए-उसे कोई कष्ट नहीं है। तुम बिल्कुल ठीक हो जाओगे। चिन्ता की कोई बात नहीं है, कोई खतरा नहीं है । रोगी को प्रोत्साहित किया जाए, विश्वास और आस्था को पैदा किया जाए और ऐसी भावना भरी जाए, जिससे उसका मनोबल बढ़े। यदि ऐसा होता है तो रोगी बड़ी से बड़ी पीड़ा को सहजभाव से सहन कर लेता है। यदि चिकित्सक कहे-तुम कैसे ठीक होओगे? तुम्हारी बीमारी असाध्य है, बड़ा खतरा है। इस प्रकार की भावना से दस प्रतिशत पीड़ा भी सौ प्रतिशत बन जाती है । आस्था और विश्वास से बहुत अन्तर आ जाता है। जो चिकित्सक आस्था और विश्वास पैदा करना जानता है, वह चिकित्सा से पूर्व ही पचास प्रतिशत सफल हो जाता है । जो ऐसा करना नहीं जानता, वह मुश्किल से सफल होता है। रहस्य क्या है?
विश्वास पैदा करना बहुत महत्त्वपूर्ण है। हम स्वयं ऐसा अनुभव करते हैं। जब व्यक्ति बीमार या रोगी होता है, अनशन या तपस्या करता है तब उसे आराधना सुनाई जाती है। वह उसे सुनकर झूमने लग जाता है। उन क्षणों में ऐसा लगता है—कोई कष्ट ही नहीं है । इस प्रकार के रसायन पैदा होते हैं, जो वेदना की अनुभूति कराने वाली तंत्रिका के कार्य में बाधा पहंचाते हैं। उस स्थिति में पीड़ा का अनुभव होता ही नहीं है। कई व्यक्तियों को पहले बड़ा कष्ट होता किन्तु जब उन्हें आराधना सुनाई जाती तब ऐसी स्थिति बन जाती, जिससे सारा कष्ट समाप्त हो जाता है। काशी नरेश की बात प्रसिद्ध है । जब उनका ऑपरेशन हो रहा था तब उन्होंने कहा था—मुझे बेहोश करने की जरूरत नहीं है। आप मुझे गीता दे दीजिए। जब मैं उसे पढ़ने में लीन हो जाऊं तब आप ऑपरेशन कर देना। हमारे सामने ऐसी अनेक
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