SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 81
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७२ जैनदर्शन में तत्त्व-मीमांसा लिए आवरण, पारतन्त्र्य और दुःख का हेतु कैसे बने ? कर्म जीवात्मा के आवरण, पारतन्त्र्य और दुःखों का हेतु है, गुणों का विघातक है। इसलिए वह आत्मा का गुण नहीं हो सकता। __ बेड़ी से मनुष्य बंधता है। सुरापान से पागल बनता है। क्लोरोफार्म से बेभान बनता है। ये सब पौद्गलिक वस्तुएं हैं । ठीक इसी प्रकार कर्म के संयोग से भी आत्मा की ये दशाएं बनती हैं। इसलिए वह भी पौद्गलिक है। ये बेड़ी आदि बाहरी बंधन अल्प सामर्थ्य वाली वस्तुएं हैं। कर्म आत्मा के साथ चिपके हए तथा अधिक सामर्थ्य वाले सूक्ष्म स्कंध हैं। इसलिए उनकी अपेक्षा कर्म-परमाणुओं का जीवात्मा पर गहरा और आन्तरिक प्रभाव पड़ता शरीर पौद्गलिक है, उसका कारण कर्म है। इसलिए वह भी पौद्गलिक है । पौद्गलिक कार्य का समवायी कारण पौद्गलिक होता है । मिट्टी भौतिक है तो उससे बनने वाला पदार्थ भौतिक ही होगा। आहार आदि अनुकूल सामग्री से सुखानुभूति और शस्त्र-प्रहार आदि से दुःखानुभूति होती है। आहार और शस्त्र पौद्गलिक हैं, इसी प्रकार सुख-दुःख के हेतुभूत कर्म भी पौद्गलिक हैं। - बन्ध की अपेक्षा से जीव और पुद्गल अभिन्न हैं-एकमेक हैं। लक्षण की अपेक्षा से वे भिन्न हैं। जीव चेतन है और पुद्गल अचेतन, जीव अमूर्त है और पुद्गल मूर्त । इन्द्रिय के विषय स्पर्श आदि मूर्त हैं। उसको भोगनेवाली इन्द्रियां मूर्त हैं । उनसे होने वाला सुख-दुःख मूर्त है। इसलिए उनके कारण-भूत कर्म भी मूर्त हैं। ___मूर्त ही मूर्त को स्पर्श करता है। मूर्त ही मूर्त से बंधता है। अमूर्त जीव मूर्त कर्मों को अवकाश देता है। वह उन कर्मों से अवकाश-रूप हो जाता है। गीता, उपनिषद् आदि में अच्छे-बुरे कार्यों को जैसे कर्म कहा है, वैसे जैन-दर्शन में कर्म शब्द क्रिया का वचक नहीं है। उसके अनुसार वह (कर्म-शब्द) आत्मा पर लगे हुए सूक्ष्म पौद्गलिक पदार्थ का वाचक है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003092
Book TitleJain Darshan me Tattva Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages112
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy