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आत्मवाद
ही मनोमय आत्मा प्राणमय कोश के भीतर रहता है।
इस मनोमय शरीर की तुलना मनःपर्याप्ति से हो सकती है। मनोमय कोश के भीतर विज्ञानमय कोश है।
निश्चयात्मिका बुद्धि जो है, वही विज्ञान है। वह अन्तःकरण का अध्यवसाय-रूप धर्म है। इस निश्चयात्मिका बुद्धि से उत्पन्न होने वाला आत्मा विज्ञानमय है । इसकी तुलना भाव-मन, चेतन-मन से होती है। विज्ञानमय आत्मा के भीतर आनन्दमय आत्मा रहता है। इसकी तुलना आत्मा की सुखानुभूति की दशा से हो सकती
सजीव और निर्जीव पदार्थ का पृथक्करण
प्राण और अप्राणी में क्या भेद है ? यह प्रश्न कितनी बार हृदय को आंदोलित नहीं करता? प्राण प्रत्यक्ष नहीं हैं। उनकी जानकारी के लिए किसी एक लक्षण की आवश्यकता होती है। यह लक्षण पर्याप्ति है। पर्याप्ति के द्वारा प्राणी विसदृश्य द्रव्यों (पुद्गलों) का ग्रहण, स्वरूप में परिणमन और विसर्जन करता है । जीव
अजीव
१. प्रजनन-शक्ति (संतति-उत्पादन) प्रजनन-शक्ति नहीं। २. वृद्धि
वृद्धि नहीं। ३. आहार-ग्रहण । स्वरूप में परिणमन
नहीं विसर्जन" ४. जागरण, नींद, परिश्रम ।
नहीं विश्राम ५. आत्म-रक्षा के लिए
नहीं ६. भय-त्रास
नहीं भाषा अजीव में नहीं होती किंतु सब जीवों में भी नहीं होती - त्रस जीवों में होती है, स्थावर जीवों में नहीं होती इसलिए यह जीव का लक्षण नहीं बनता। __गति जीव और अजीव दोनों में होती है किन्तु इच्छापूर्वक या सहेतुक गति-आगति तथा गति-आगति का विज्ञान केवल जीवों में होता है, अजीव पदार्थ में नहीं।
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