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हिंसा के स्त्रोत और उनमें तारतम्य
अहिंसा का स्वरूप बहुत ही व्यापक है । यह परिवार, समाज, राष्ट्र और विश्व के जीवन में विविध रूपों में फैली हुई है। जिस किसी क्षेत्र में जो भी ज्ञात रूप या अज्ञात रूप से, स्थूल या सूक्ष्म, बाह्य या आन्तरिक हिंसा हो रही है, उस क्षेत्र में और उस रूप में हिंसा का सर्वतोमुखी विरोध या निरोध करना ही अहिंसा का प्रमुख उद्देश्य है। अहिंसा के उस विराट स्वरूप को समझना, समझाना हमारा दायित्व और कर्तव्य है और तदनुसार आचरण करना और कराना भी। किन्तु अहिंसा के स्वरूप को भलीभांति समझने के लिए हिंसा के भी तमाम रूपों को तथा उसके विभिन्न कारणों, स्रोतों, तारतम्यों एवं बचने के उपायों को भी समझ लेना जरूरी है। हिंसा के विभिन्न स्रोत : तीन योग
हिंसा का त्याग करने से पहले हिंसा के स्रोतों को भी समझ लेना आवश्यक है।
सर्वप्रथम प्रश्न यह है कि हिंसाजनित जो कर्मबन्धन होते हैं, वे आत्मा द्वारा होते हैं या शरीर के द्वारा? शास्त्रीय समाधान यह है कि मन-वचन-काया के योगों में जब तक चंचलता और हलचल रहती है, जिन्हें शास्त्रीय भाषा में योग कहते हैं-उन्हीं के द्वारा कर्मबन्ध होते हैं। वचन और मन चूंकि शरीर के ही अन्तर्गत हैं, इसलिए यह कहा जाता है कि यह कर्मबन्धन शरीर के द्वारा होता है, किन्तु उस शरीर के द्वारा जो आत्मा के साथ संलग्न हो । केवल शरीर के द्वारा बन्धन नहीं हो सकता, न अकेली आत्मा में हो सकता है । बल्कि एक-दूसरे के प्रगाढ़ सम्बन्ध के कारण ही
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