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महामंत्र : एक अनुचिन्तन
भगवती सूत्र के प्रारम्भ में मंगल वाक्य के रूप में "नमो अरिहंताणं, नमो सिद्धाणं, नमो आयरियाणं, नमो उवज्झायाणं, नमो लोए सव्ब साहूणं" 'नमो बंभोए लिवोए" का प्रयोग हुआ है । नमोक्कार मंत्र जैनों का एक सार्वभौम और सम्प्रदायातीत मंत्र है । वैदिक परम्परा में जो महत्त्व गायत्री मंत्र को दिया गया है, बौद्ध परम्परा में जो महत्त्व “ तिमरन" मंत्र को दिया गया है । उससे भी अधिक महत्त्व जैन परम्परा में इस महामन्त्र
है । इसकी शक्ति अमोघ है और प्रभाव अचिन्त्य है । इसकी साधना और आराधना से लौकिक और लोकोत्तर सभी प्रकार की उपलब्धियाँ प्राप्त होती हैं । यह महामन्त्र अनादि और शाश्वत है । सभी तीर्थंकर इस महामन्त्र को महत्त्व देते आए हैं । यह जिनागम का सार है । जैसे तिल का सार तेल है; दूध का सार घृत है; फूल का सार इत्र है; वैसे ही द्वादशांगी का सार नमोकार महामन्त्र है । इस महामन्त्र में समस्त श्रुतज्ञान का सार रहा हुआ है, क्योंकि परमेष्ठी के अतिरिक्त अन्य श्रुतज्ञान कुछ भी नहीं है । पंच परमेष्ठी अनादि होने के कारण यह महामन्त्र अनादि माना गया है । यह महामन्त्र कल्पवृक्ष, चिन्तामणि रत्न या कामधेनु के समान फल देने वाला है । यह सत्य है कि जितना हम इस महामन्त्र को मानते हैं उतना इस महामन्त्र के सम्बन्ध में जानते नहीं । मानने के साथ जानना भी आवश्यक है, जिससे इस महामन्त्र के जप में तेजस्विता आती है ।
'मननात् मन्त्रः' मनन करने के कारण ही मंत्र नाम पड़ा है । मन्त्र मनन करने को उत्प्रेरित करता है, यह चिन्तन को एकाग्र करता है, आध्यात्मिक ऊर्जा / शक्ति को बढ़ाता है । चिन्तन / मनन कभी अंधविश्वास नहीं
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